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बिहार के सिवान जिले में मैरवा गांव है। कच्ची-पक्की सड़कों से जब कभी आप मैरवा पहुंचेंगे तो खेतों के बीच बड़े से मैदान में कुछ लड़कियां फुटबॉल खेलते दिख जाएंगी। दरसअल ये बच्चियां सिर्फ फुटबॉल ही नहीं खेल रही होती हैं बल्कि व्यस्त रहती हैं अपने अरमानों के आसमानों को बुनने में। और इन आसमानों में जड़े होते हैं देश के लिए खेलने का सपना। यह पूरा वाकया मैरवा गांव में स्थित रानी लक्ष्मी बाई महिला स्पोर्ट्स एकेडम का है जहां के खलिहान जैसे मैदान से निकल रही है देश की प्रतिभावान खिलाड़ी।
क्यों खास है रानी लक्ष्मीबाई महिला स्पोर्ट्स एकोडमी?
बिहार की राजधानी पटना से करीब 150 किमी की दूरी पर स्थित मैरवा गांव सिवान जिले में आता है। यहां स्थित हैं रानी लक्ष्मीबाई महिला स्पोर्ट्स एकोडमी। अकादमी में गांव के आस-पास की लड़कियां फुटबॉल की ट्रेनिंग लेती हैं। इस स्पोर्ट्स एकेडमी की उपलब्धि यहीं पर खत्म नही होती। इस एकेडमी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई फुटबॉल खिलाड़ी दिए हैं। और आने वाली पीढ़ी को तैयार कर रही है।
2013 में फ्रांस में आयोजित प्रतियोगिता में देश के लिए फुटबॉल टीम का हिस्सा रह चुकी तारा का कहना है कि जब वह पहली बार खेलने के लिए घर से बाहर निकली थीं तब गांव और समाज के लोगों को यह ठीक नहीं लगा था। लेकिन आज जब वह देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं तब गांव के लोग अपने घर की बेटियों को खेलने के लिए और तारा की तरह बनने को कहते हैं।
गांव के सरकारी स्कूल के टीचर के प्रयास से मुमकिन हुआ बच्चियों का खेलना
साल 2009 में इस एकेडमी की स्थापना हुई थी। जब एक सरकारी स्कूल के टीचर संजय पाठक ने दो बच्चियों के खेल के प्रति जूनून को देखा। एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि 2009 में शिक्षक के तौर पर उनका ट्रांसफर मैरवा में हुआ तब भारत सरकार की महत्वकांक्षी खेल योजना “पंचायत युवा खेल अभियान ” चल रही थी। स्कूल की दो बच्चियां तारा खातून और पुतुल कुमारी दौड़ की प्रतियोगिता में भाग लेना चाहती थीं, बच्चियों जिद करने पर मैंने दौड़ के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की। पहले प्रयास में ही दोनों ही बच्चियों ने block level पर गोल्ड जीत गईं। जिले के लिए दोनों का चयन हुआ वहां भी उन्होंने खेला और स्टेट लेवल पर सिल्वर और गोल्ड मेडल जीता। इन जीत के बाद तारा और पुतुल कुमारी रूकी नहीं उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश के लिए खेला। तारा खातून और पुतुल कुमारी की सफलता से उन्हें लगा कि अगर गांव की लड़कियों को सही ट्रेनिंग दी जाए तो वो देश का नाम रोशन कर सकती हैं। इसी सपने को लेर रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी की नींव डाली गई। अब तक इस अकादमी से लगभग 1 दर्जन से ज्यादा लड़कियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हैं तो 60 से ज्यादा राष्ट्रीय खिलाड़ी बन चुकी हैं।
खिलाड़ियों की राह मुश्किल पर इरादे बुलंद
सिवान के इस खेल अकादमी में खेल रही हर खिलाड़ी का सपना देश के लिए खेलने का है। लेकिन इनकी राहें इतनी आसान नहीं है। यहां खेलने वाली ज्यादातर लड़कियां गरीब घरों से आती हैं। कम संसाधन, गरीबी, सामाजिक बंधनों के बावजूद लड़कियों का खेल के प्रति जुनून एक मिसाल है।