RathYatra: एक दिव्य और अद्भुत यात्रा का संगम!

RathYatra: भगवान जगन्नाथ रथयात्रा ओडिशा के पुरी में मनाया जाने वाला एक पवित्र त्योहार है। यह भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध धार्मिक उत्सवों में से एक है, जिसमें लाखों भक्त हर साल शामिल होते हैं। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथयात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक होती है। इस लेख में हम भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के महत्व, इतिहास और आयोजन के बारे में विस्तार से जानेंगे।

रथयात्रा का महत्व

रथयात्रा हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ के दर्शन और आराधना का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह त्योहार आत्मा की ईश्वर के साथ मिलन की यात्रा का प्रतीक है। रथयात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों में सवार होकर अपने भक्तों के बीच आते हैं। इस दौरान भक्तजन भगवान को रथ पर बैठाकर खींचते हैं, जिसे एक अत्यंत पुण्यकारी कार्य माना जाता है।

क्या है रथयात्रा का इतिहास

भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसे 10वीं सदी से मनाया जाता रहा है। इस त्योहार का उल्लेख अनेक पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को राजा इंद्रद्युम्न ने स्थापित किया था और तभी से यह परंपरा चल रही है।

जानें क्या है रथयात्रा और पुरी का रहस्य!

रथयात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को भव्य रथों में सजाया जाता है। इन रथों का निर्माण हर वर्ष नए सिरे से किया जाता है और इन्हें आकर्षक तरीके से सजाया जाता है। रथयात्रा में शामिल होने वाले भक्तजन इन रथों को खींचकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं, जहाँ भगवान सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद, रथयात्रा का समापन उल्टा रथयात्रा के साथ होता है, जब भगवान वापस जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं।

भव्य होता है रथयात्रा का आयोजन

रथयात्रा का आयोजन आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होता है। इस दौरान, पुरी में भव्य उत्सव का माहौल होता है। रथयात्रा की शुरुआत “पाहंडी” विधि से होती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंदिर से बाहर लाया जाता है। इसके बाद, “छेरा पोहरा” रस्म अदा की जाती है, जिसमें पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं। यह रस्म सेवा और समर्पण का प्रतीक है।

रथयात्रा के लिए होता है तीन रथों का निर्माण

नंदीघोष या गरुड़ ध्वज रथ – भगवान जगन्नाथ का रथ, जो 45 फीट ऊंचा और 18 पहियों वाला होता है।

तालध्वज रथ – भगवान बलभद्र का रथ, जो 44 फीट ऊंचा और 16 पहियों वाला होता है।

दर्पदलन रथ – देवी सुभद्रा का रथ, जो 43 फीट ऊंचा और 14 पहियों वाला होता है।

रथयात्रा के धार्मिक और सामाजिक प्रभाव

भगवान जगन्नाथ रथयात्रा धार्मिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती है। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और मेलों का आयोजन होता है, जिसमें लोग आपस में मिलते हैं और सामूहिक रूप से उत्सव का आनंद लेते हैं। यह पर्व लोगों के बीच एकता और भाईचारे का संदेश भी फैलाता है।

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Positive सार

रथयात्रा के दौरान भगवान के दर्शन करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है। भक्तजन इस उत्सव में भाग लेकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं। रथयात्रा का यह पवित्र त्योहार हमें धर्म, सेवा और समर्पण के महत्व को समझने और अपनाने की प्रेरणा देता है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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