Fulbasan Bai Yadav: छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के गांव सुकुलदैहान की रहने वाली फूलबासन बाई यादव को आज पूरा देश पहचानता है। सिर्फ पांचवीं तक पढ़ीं फूलबासन बाई ने कई संघर्षों का सामना करते हुए यह मुकाम हासिल किया है। उनकी कहानी ने ना जाने कितनी ही महिलाओं को प्रेरणा दी है और आगे भी देती रहेगी। आइए जानते हैं कैसे उन्होंने जीवन में आई मुश्किलों को मात देते हुए अपना और अपने साथ कई महिलाओं की जीवन संवारा।
संघर्षों से नहीं हारी फूलबासन
फूल बासन का जीवन आसान नहीं रहा। वो जन्म से ही अभावों में पली-बढ़ीं। आर्थिक तंगी की वजह से उनकी पढ़ाई भी अधूरी रही। गरीबी से संघर्ष शादी और चार बच्चों के बाद भी जारी रहा। हालात इतने खराब थे की बच्चों को भूख से तड़पता देख फूलबासन बाई ने एक बार खुदकुशी की कोशिश भी की थी लेकिन उनकी बेटी ने उन्हें रोक लिया। बाद में उन्होंने ठान लिया कि अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी देंगी। यहीं से उनका जीवन ने एक नया मोड़ लिया। एक मां के रूप में उन्होंने खुद को और अपने बच्चों को दूसरा जीवन देने की ठान ली।
2 रुपए से शुरु किया समूह
2001 में उन्होंने महिला समूह शुरु करने की सोची और 2 रुपए और दो मुट्ठी चावल से 11 महिलाओं के साथ महिला समूह शुरू किया। छोटे से गांव की बहु और रुढ़ीवादी समाज से होने के कारण फूल बासन को विरोध का सामना भी करना पड़ा लेकिन फूलबासन बाई ने हार नहीं मानी। कुछ ही दिनों में बमलेश्वरी ब्रांड के नाम से उन्होंने अचार बनाना शुरू किया, जिसकी डिमांड बढ़ने लगी। आज मां बमलेश्वरी स्व-सहायता समूह में लगभग 2 लाख महिलाएं काम कर रही हैं और फूलबासन बाई समूह की अध्यक्ष हैं।
पद्मश्री से सम्मानित हैं फूलबासन
महिला समूह के साथ फूलबासन बाई बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य,घरेलू हिंसा, शराब बंदी के लिए भी काम करती हैं। महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए महिलाओं की फौज भी है जो हमेशा साथ देने के लिए खड़ी रहती हैं। महिलाओं की फौज के चलते गांव में घरेलू हिंसा अब नाम मात्र रह गई है। इसके अलावा फूलबासन बाई डेयरी, मछली पालन, बकरी पालन और खाद कंपनी भी चला रही हैं, जिसकी वजह से लाखों महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। 2012 में फूलबासन बाई को पद्मश्री से स्मानित किया गया था साथ ही राज्य सरकार की जननी सुरक्षा योजना की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं।