Sohrai Art: 10,000 साल पुरानी लोक कला ने महिलाओं के भाग्य को बदला, प्राकृतिक रंगों से तैयार पेंटिंग की दुनिया भर में है मांग



झारखंड की सोहराई और खोवर कला की चर्चा अब पूरे देश-दुनिया में होने लगी है। करीब दस हजार साल पुरानी इस लोक कला में महिलाएं प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके पेंटिंग तैयार करती हैं, और अब इसकी मांग पूरी दुनिया में है।
शुरुआत में झारखंड के विभिन्न आदिवासी समूहों द्वारा अपने घरों की सुंदर दीवार पेंटिंग बनाने के लिए उपयोग किया जाता था, अब सोहराई कला का उपयोग बैग, टी-शर्ट, चादर, पर्दे और अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए सर्वोत्तम तरीके से किया जा रहा है। दुनिया भर के कई देशों में प्रदर्शनियों की मेजबानी करके, पद्म श्री बुलू इमाम ने इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस लोक कला को बढ़ावा देने के लिए उनके बेटे जस्टिन इमाम और बहू अलका इमाम ने भी एक केंद्र की स्थापना की है। हजारीबाग के केंद्र में कई महिलाएं और लड़कियां सोहराई कला की बारीकियां सीखती हैं।

सोहराई कला में मुख्य रूप से चार रंग की मिट्टी का उपयोग

अलका इमाम के अनुसार, सोहराई कला मुख्य रूप से लाल, काली, पीली और दूधिया मिट्टी को मिलाकर बनाई गई है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक रंग है। यह मिट्टी झारखंड के कई हिस्सों में पाई जाती है। अलका इमाम बताती है कि सोहराई कला एक प्राचीन कला है। इस कला में ऐसा नहीं होता है कि जो बन में आए, कुछ भी बना दिया जाए। बल्कि, क्षेत्र के विभिन्न समुदायों के लोग अपने-अपने अनोखे तरीके से कलाकृतियों का निर्माण करते हैं। हजारीबाग और आसपास के इलाकों में 13 समुदाय के लोग विभिन्न स्टाइल में पेंटिंग करते हैं। आज भी त्योहारों और शादियों के दौरान घर की महिलाएं अपने घरों में कलाकृतियों का निर्माण करती हैं।

बुलू इमाम का कहना है कि सोहराई पर्व पालतू पशु और मानवता के बीच गहरा प्रेम स्थापित करता है। इस कला को किसी के घर में विवाह के बाद वंश वृद्धि के लिए और दीपावली के बाद फसल वृद्धि के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। ऐसी मान्यता है कि जिस घर की दीवार पर कोहबर और सोहराई की पेंटिंग होती है, उनके घर में वंश और फसल वृद्धि होती है। फसल वृद्धि के लिए लोग प्राकृतिक वस्तुओं के चित्र बनाते हैं। जबकि वंश वृद्धि के लिए दिल, राजा-रानी का चित्र बनाए जाते हैं। इस कला के प्रति अब युवाओं की भी रूचि बढ़ी है। महिलाएं पेंटिंग बनाकर अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही है।

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Dr. Kirti Sisodhia

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