VVPAT: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मतदान की शुरूआत हो चुकी है। ऐसे में आपने सुप्रीम कोर्ट और वीवीपैट के बारे में जरूर सुना होगा। जानते हैं क्यों सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट को लेकर क्या कहा और क्या है ये वीवीपैट, चुनाव में इसका रोल क्या होता है जानेंगे सबकुछ…
खबरों में क्यों वीवीपैट ?
कुछ दिनों पहले एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कोर्ट के सामने एक ऐसी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें ये आरोप लगाया गया था, कि केरल में मॉक पोलिंग के दौरान किसी एक पार्टी को ज्यादा वोट जा रहे थे। सरल शब्दों में समझों तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में डाले गए वोट और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी कि VVPAT की पर्चियों की 100% क्रॉस-चेकिंग की मांग को लेकर याचीका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीले सुनी और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग के द्वारा अपनाए गए कदमों के बारे में जानने के लिए EVM और VVPAT की पूरी प्रक्रिया समझी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता कायम रहे। इसमें शक नहीं होना चाहिए कि ये होना चाहिए था और हुआ नहीं।“ ऐसा कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
क्या होता है वीवीपैट?
वीवीपैट (VVPAT) का पूरा नाम है वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल। ये मशीन ईवीए की बैलट यूनिट से जुड़ा होता है। जैसे ही वोटर वोट डालता है इस मशीन से कागज की पर्ची प्रिंट होती है। इसी पर्ची के जरिए आप अपने वोट को वेरीफाई करते हैं। पर्ची पर आपने जिस उम्मीदवार को वोट दिया है उसका नाम, क्रमांक संख्या और चुनाव चिन्ह प्रिंट होता है। प्रिंट की गई ये पर्ची, वीवीपैट मशीन में एक ग्लास विंडो के पीछे 7 सेकंड तक दिखता है। बाद में ये पर्ची वीवीपीएटी मशीन के नीचे लगे कंपार्टमेंट में चली जाती है। यानी कि VVPAT से मतदाता को पता लग जाता है कि उसने EVM में जिस उम्मीदवार को वोट दिया है, उसको वोट मिला है या नहीं।
क्या मतदाता पर्ची ले सकता है?
VVPAT स्लिप मतदाताओं को नहीं दी जाती है। इसे वोटर अपने घर नहीं ले जा सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि बाद में रैंडम तरीके से वोट वेरीफाई करने में इसका इस्तेमाल होता है। चुनाव आयोग के मुताबिक वीवीपैट के फिजिकल वेरिफिकेशन के पीछे ये उद्देश्य है कि इससे मतदाता और पॉलिटिकल पार्टियां, दोनों को यह भरोसा दिलाया जा सके की मतदान पारदर्शी तरीके सो हो रहा है।
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कब हुआ था पहली बार इस्तेमाल?
वीवीपैट (VVPAT) का पहली बार इस्तेमाल साल 2013 में हुआ था। ये नागालैंड के विधानसभा चुनाव में शामिल हुआ था। बाद में चुनाव आयोग ने सिस्टेमेटिक तरीके से अलग-अलग चुनावों में वीवीपैट को शामिल किया और 2017 आते-आते सभी चुनाव में हर लेवल के चुनाव में वीवीपैट अनिवार्य जरूरी कर दिया गया।