ISRO तक पहुंचने वाले इस वैज्ञानिक की कहानी दिल छू लेगी, कभी मां के साथ टपरी में धोते थे जूठे बर्तन!

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  • Post last modified:November 18, 2023
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ISRO

Mission Chandrayan-3 को भला कौन भूल सकता है। भारत के सफल मिशन चंद्रयान ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधानों को नई ऊंचाई दी। हर कोई इसरो (ISRO) के वैज्ञानिकों के मेहनत को जानता है। इसरो (ISRO) की हजारों लोगों की टीम और उनकी मेहनत के दम पर भारत आज चांद पर पहुंच पाया है। इन वैज्ञानिकों की मेहनत के दम पर ही भारत का चंद्रयान 3, साउथ पोल (दक्षिणी ध्रुव) के पास लैंड करने वाला दुनिया का पहला देश बना। इन्हीं वैज्ञानिकों में से एक हैं छत्तीसगढ़ के एक छोटे से कस्बे चरौदा के रहने वाले भरत कुमार, जो चंद्रयान 3 की टीम का हिस्सा रहे। भरत की कहानी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, भरत ने जितनी कठिनाइयों से इस मुकाम को हासिल किया है, वह किसी सपने की तरह है। भरत ने इसरो (ISRO) तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। जानते हैं उनकी कहानी,

संघर्षों से भरा रहा बचपन

भरत के पिता में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे, आर्थिक रूप से गरीब भरत के परिवार में काफी परेशानियां थी। यही वजह है कि भरत की मां ने पिता का साथ देने के लिए कुछ काम करने की सोची ताकि घर की आमदनी बढ़े। यही वजह थी कि भरत की मां ने चरोदा रेलवे स्टेशन पर चाय और इडली बेचने का काम शुरू किया। उद्देश्य था बेटे को अच्छी शिक्षा देना, चरौदा में रेलवे का कोयला उतरता चढ़ता है। भरत यहां मां का हाथ बंटाने के लिए स्टेशन रोज जाते थे। मां इडली और चाय बेचती थी तो बेटा प्लेट और कप धोकर मां की मदद करते थे। इन सभी परेशानियों के बीच भी भरत ने सपना देखन नहीं छोड़ा और न ही पढ़ाई छोड़ी। उन्हें अपने माता-पिता के लिए कुछ बेहतर करना था, अपने लिए कुछ बेहतर करना था देश के लिए कुछ करना था। बस क्या था वे रुके नहीं…

जिंदल ग्रुप से मिली मदद

चरौदा के एक स्थानीय स्कूल से भरत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जब भरत नौवी कक्षा में पढ़ रहे थे तब उन्हें स्कूल की फीस भरने में परेशानी आई नौबत यहां तक आ गए कि उन्हें टीसी निकलवाने की जरूरत लगने लगी। लेकिन जब किसी का हौसला मजबूत हो तो उसे राहें मिल ही जाती है। भरत के साथ भी ऐसा कुछ था। स्कूल प्रशासन ने भरत की काबिलियत को देखते हुए फीस माफ कर दी। स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों ने भरत के कॉपी किताब का खर्च उठा लिया। भरत भी मेहनत से नहीं चूके उन्होंने पढ़ाई पूरे लगन से की और 12वीं मेरिट के साथ पास की। इसके बाद उनका चयन IIT धनबाद के लिए हुआ। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान भी उन्हें कई आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस दौरान रामपुर के उद्यमी अरुण बाग और जिंदल ग्रुप ने भरत की मदद की।

परिवार के साथ देश का भी किया नाम

भरत ने हर कदम पर मेहनत की सपनों के लिए दिन-रात एक किया लेकिन कभी भी किसी को निराश नहीं किया। हर किसी के लिए उम्मीद बनें भरत ने अपनी प्रखर मेधा का परिचय देते हुए 98% के साथ IIT धनबाद में गोल्ड मेडल से अपना ग्रैजुएशन पूरा किया। जब भरत इंजीनियरिंग के 7वें सेमेस्टर में थे, तब उनका ISRO में सलेक्शन हुआ। आज जब भारत इस चंद्रयान 3 मिशन सफल हुआ है तो उसमें भरत का भी हाथ है जो छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है। 23 साल के भरत उन लाखों करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है जो जीवन में कुछ कर गुजरना चाहते हैं। भरत छोटे शहरों से आने वाले अनगिनत लोगों के लिए रोशनी और आशा हैं, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हुए भी कुछ बड़ा करने का सपना अपनी आंखों में बुनते हैं।

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