

निवेश यानी कि इन्वेस्टमेंट मुश्किल समय में सबसे अहम होता है। ऐसे ही निवेशकों को अपनी मेहनत की कमाई को बड़े ही ध्यान से निवेश करना चाहिए। आज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पैसिव मल्टी-एसेट फंड की शुरुआत की गई है। यह फंड कम खर्च और कम जोखिम के साथ निवेशकों की एसेट एलोकेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पैसिव मल्टी-एसेट फंड क्यों है बेहतर
पैसिव मल्टी एसेट फंड्स में सभी एसेट क्लास के ईटीएफ और इंडेक्स फंड जैसे कि गोल्ड ईटीएफ, निफ्टी इंडेक्स फंड, सिल्वर ईटीएफ शामिल होते हैं। बाजार में ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीम पहले हैं जो निवेशकों को सभी एसेट क्लास के बैलेंस्ड मिक्स ऑफर करते हैं। लेकिन ऐसे फंड एक्टिवली मैनेज्ड नहीं होते हैं। इसका मतलब ये है कि सिचुएशन के हिसाब से इनके एसेट एलोकेशन में तुरंत बदलाव नहीं होता था।
जबकि, पैसिव मल्टी-एसेट फंड में फंड मैनेजर समय-समय पर एसेट एलोकेशन में बदलाव कर बेहतर रिटर्न ले सकते हैं। पैसिव मल्टी एसेट फंड लागत और टैक्स, दोनों मामलों में फायदे का होता है। इनमें एसेट क्लास के नियमित संतुलन से निवेशक की टैक्स से जुड़ी चिंता भी दूर होती है। कुल मिलाकर ऐसी स्कीम निवेश को आसान बनाती है।
एसेट मैनेजमेंट कंपनियां तीन तरह के फंड ऑफर करती है
पैसिव मल्टी एसेट फंड (Passive Multi Asset Fund): इसमें अलग-अलग एसेट क्लास जैसे इक्विटी, गोल्ड, डेट के ईटीएफ/ इंडेक्स फंड शामिल होते हैं। इसमें फंड मैनेजर सिर्फ एसेट एलोकेशन में बदलाव लाते हैं एक्टिव फंड के मुकाबले इनकी लागत काफी कम होती है।
एक्टिव फंड (active fund): एक्टिवली मैनेज्ड फंड में शेयर या एसेट क्लास का फैसला फंड मैनेजर के द्वारा होता है। मार्केट के हालात के हिसाब से शेयर्स और एसेट एलोकेशन में बदलाव होता है। ऐसे फंड की लागत अधिक होती है।
पैसिव फंड (passive fund): पैसिवली मैनेज्ड फंड में शेयर या एसेट क्लास का चुनाव पोर्टफोलियो मैनेजर के द्वारा नहीं होता है। ऐसे फंड में शेयरों का चयन बेंचमार्क इंडेक्स के अनुसार ऑटोमैटिकली होता है। ऐसे फंड की बहुत कम होती है।