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तेलंगाना राज्य के वारंगल में
स्थित काकतीय रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर भारतीय निर्माण का खूबसूरत उदाहरण है।
12वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया
है। दक्षिण भारत का यह मंदिर अपनी बेजोड़ बनावट, ऐतिहासिक मान्यताओं और खूबसूरत
वास्तु के लिए प्रसिद्ध है। चीन में यूनेस्को विश्व धरोहर कमेटी के 44वें सत्र में
इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। नार्वे के अलावा कमेटी के 22
सदस्यों ने विश्व विरासत में इस मंदिर को शामिल करने के पक्ष में मत दिया। ‘रामप्पा मंदिर’ को सूचिबद्ध किए जाने के बाद भारत
के 39 स्थल विश्व विरासत की सूची में शामिल होंगे।
रामप्पा मंदिर का इतिहास
रामप्पा मंदिर का निर्माण 12 वीं
सदी में हुआ था। 13वीं शताब्दी में इटली के मशहूर खोजकर्ता मार्को पोलो ने इसकी
बनावट की वजह से इसे ‘मंदिरों
की आकाशगंगा का सबसे चमकीला तारा’ कहा था। मंदिर बनने में लगभग 40 साल लगे थे। मंदिर के निर्माण से जुड़ा एक
रोचक तथ्य यह है, कि इस मंदिर का निर्माण ऐसे पत्थरों से हुआ है, जो पानी में
तैरते हैं। पत्थरों से बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
मंदिर के कारीगर थे ‘रामप्पा’
रामप्पा मंदिर का नामकरण मंदिर
बनाने वाले कारीगर के नाम पर किया गया है। दरअसल काकतीय वंश के महाराजा गणपति देव
ने 1213 में एक विशाल शिव मंदिर बनाने का निर्णय लिया। वह ऐसा मंदिर बनवाना चाहते
थे, जो इतिहास में अमर हो जाए। रामप्पा को मंदिर निर्माण का दायित्व सौंपा गया। जब
मंदिर बनकर तैयार हुआ तो राजा इस मंदिर की खूबसूरती को देखकर इतने खुश हुए कि
उन्होंने मंदिर का नाम ही रामप्पा मंदिर रख दिया। 6 फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर बने इस
मंदिर की बनावट वास्तुकला का शानदार नमूना है। मंदिर की दीवारों पर महाभारत और
रामायण के दृश्य उकेरे गए हैं। 900 साल पुराना यह मंदिर तुलानात्मक रूप से अब भी
काफी मजबूत है। इसकी इन्हीं विशेषताओं की वजह से यह आज भी शोध का विषय बना हुआ है।