Bastar King Marriage: 20 फरवरी 2025 को छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक ऐतिहासिक घटना घटी जब बस्तर के राजा कमलचंद्र भंजदेव ने नागौद रियासत की राजकुमारी भुवनेश्वरी से विवाह के बंधन में बंधे। इस विवाह ने न केवल राजसी शान को बल्कि आदिवासी परंपराओं को भी जीवित रखा, और 107 साल बाद बस्तर राजमहल में हुई इस शादी ने एक नई कहानी रची। आइए, जानते हैं इस अद्वितीय विवाह और बस्तर राजवंश के इतिहास के बारे में।
ऐतिहासिक शाही धरोहर
बस्तर पैलेस, जिसे हम बस्तर राजमहल भी कहते हैं, यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह महल बस्तर रियासत की प्रशासनिक राजधानी के रूप में कार्य करता था। महल की वास्तुकला में आदिवासी परंपराओं की झलक साफ नजर आती है। इसके विशाल स्तंभों, दीवारों पर बनी कलाकृतियाँ और जटिल नक्काशी इसे एक ऐतिहासिक धरोहर बनाती हैं। राजा कमलचंद्र भंजदेव का विवाह यहीं हुआ, जहां 1918 में रुद्रप्रताप देव का विवाह हुआ था, और इसके बाद बस्तर राजघराने के अन्य सदस्यों ने भी विवाह के लिए दिल्ली, गुजरात और अन्य स्थानों को चुना था।
बस्तर रियासत का गौरवमयी इतिहास
बस्तर रियासत की स्थापना 1324 में अन्नम देव ने की थी। यह रियासत काकातिया वंश के राजा प्रताप रुद्र देव के भाई द्वारा स्थापित की गई थी। बस्तर रियासत के इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हैं, जैसे कि 1921 में जब राजा रुद्रप्रताप देव ने अपनी 11 वर्षीय बेटी प्रफुल्ल कुमारी देवी को गद्दी पर बिठाया, जिससे बस्तर की पहली महिला शासिका बनीं। इसके बाद 1948 में बस्तर का भारत में विलय हो गया और राजा कमलचंद्र भंजदेव काकतीय वंश के 23वें राजा बने।
बस्तर के राजा और आदिवासियों का संबंध
बस्तर के राजा केवल शासक नहीं, बल्कि आदिवासियों के लिए पिता और आराध्य के समान माने जाते हैं। बस्तर के आदिवासी लोग अपने राजा को देवतुल्य मानते हैं और बस्तर दशहरा जैसे आयोजनों में राजा की महत्ता और आदिवासी परंपरा को बड़ी श्रद्धा से देखा जाता है। इस विवाह के दौरान भी बस्तर के आदिवासी लोग अपने राजा के लिए खास तैयारियों में जुटे थे। बस्तर पैलेस में आयोजित विवाह में आदिवासी महिलाएँ, जो सुवासिनों के रूप में विवाह की रस्में निभाती हैं, ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विवाह की अद्वितीय रस्में और परंपराएँ
राजा कमलचंद्र भंजदेव ने इस विवाह के लिए बस्तर के आदिवासियों के साथ अपनी परंपरा को सम्मानित किया। सबसे पहले बस्तर की आराध्या देवी दंतेश्वरी से विवाह की अनुमति ली गई। इसके बाद बस्तर की पांच सुवासिनों ने विवाह की रस्में अदा कीं, जिसमें हल्दी रस्म का विशेष महत्व था। बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों से आदिवासी लोग राजा के लिए हल्दी लेकर आए थे। इसके बाद राजा हाथी पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले और विवाह की रस्में पूरी करने के लिए नागौद रियासत के लिए निकले।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
इस विवाह में केवल राजघरानों के लोग ही नहीं, बल्कि बस्तर के आदिवासी लोग भी शामिल हुए। इन आदिवासी लोगों ने विवाह में अपनी परंपराओं के अनुसार हार गूथकर राजा के स्वागत की तैयारी की और लोक वाद्य यंत्रों के साथ विवाह समारोह को और भी भव्य बना दिया। इस विवाह ने यह साबित कर दिया कि बस्तर की परंपराएँ और राजसी वैभव अब भी जीवित हैं और राजा कमलचंद्र भंजदेव के रूप में बस्तर के लोग आज भी अपने राजा को पितातुल्य मानते हैं।
Positive सार
बस्तर के राजा कमलचंद्र भंजदेव का विवाह न केवल एक राजसी घटना थी, बल्कि यह बस्तर की समृद्ध संस्कृति और आदिवासी परंपराओं का प्रतीक भी बन गया। 107 वर्षों बाद बस्तर राजमहल में हुई इस विवाह ने बस्तर के इतिहास को एक नई दिशा दी है, जहाँ परंपराएँ और शाही वैभव मिलकर एक अनूठी गाथा रचते हैं। यह विवाह बस्तर के लोगों के दिलों में हमेशा के लिए अमिट रहेगा, और आदिवासी परंपराओं का सम्मान हमेशा बना रहेगा।