दिल्ली कैसे बनीं भारत की राजधानी? इतिहास के पन्नों में छिपा है राज!

एक शहर जो 16 बार उजाड़ा गया। एक शहर जो महाभारत काल का साक्षी रहा। एक शहर जो मुगलों और भारतीय राजाओं के लिए संग्राम रण बना और एक शहर जिसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू कह गए…..

“ये शहर अनेक साम्राज्यों की कब्र रहा और फिर एक गणराज्य की नर्सरी बना”

आज की अनसुनी गाथा भारत की राजधानी दिल्ली की, जो खुद में समेटे है सदियों का इतिहास। जिसे अंग्रेजों ने कलकत्ता से छीनकर दिया राजधानी का सरताज, वो दिल्ली जो सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि बन गया भारत का गणराज्य। तो क्या आप तैयार हैं दिल्ली की अनसुनी गाथा के लिए….?

दिल्ली भारत की राजधानी कब और कैसे बनी इसके लिए दिल्ली के इतिहास पर नजर डालना जरूरी है। आज जो आप दिल्ली शहर देख रहे हैं न ये महाभारत के समय से अस्तित्व में है। महाभारत में इस बात का जिक्र है कि दिल्ली ही वो इंद्रप्रस्थ थी जिसे पांडवों ने बसाया था। कुछ आर्कियोलॉजिकल साक्ष्य ये कहते हैं कि 1000 साल पहले दिल्ली अशोक के समय श्रीनिवासपुरी था।

इतिहास पर एक नजर

आधुनिक इतिहास की तरफ जब आप जाएंगे तो आठवीं सदी में तोमर वंश के राजाओं ने सबसे पहले दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई। राजा अनंगपाल तोमर ने महरौली के पास लाल कोट किले का निर्माण करवाया और तोमर राजाओं के बाद लाल कोट पर पृथ्वीराज चौहान ने राज किया उन्होंने ही लाल कोट का नया नाम रखा-  राय पिथौरा। इनके बाद दिल्ली पर खिलज़ी वंश, तुग़लक़ वंश, सैयद वंश और लोदी वंश समेत कई शासकों ने राज किया।

1857 की क्रांति से बदल गया सबकुछ

साल 1857 की क्रांति तो सभी को याद होगी। यही वो दौर था जब दिल्ली पर सबसे बड़ा प्रहार किया गया। अंग्रेज़ों ने बगावत रोकने के लिए दिल्ली को पूरी तरह से तबाह कर दिया। दिल्ली शहर का एक तिहाई हिस्सा खंडहर में बदल दिया गया और ईस्ट इंडिया कंपनी का दिल्ली पर कब्जा हो गया। लेकिन अंग्रेजों ने इस समय दिल्ली को राजधानी नहीं बनाई। तब कलकत्ता भारत की राजधानी थी। कलकत्ता से राजधानी को दिल्ली कैसे शिफ्ट किया गया इसके लिए चलते हैं सीधे साल 1905 में।

1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया। यानी कि बंगाल को दो हिस्सों में बांट दिया। यही हिस्सा आज बंग्लादेश है। भारतीयों में आक्रोश ने जन्म लिया वो बंगाल विभाजन की वजह से रोष में थे। जगह-जगह दंगों और विरोध का स्वरूप बड़ा होता गया। ब्रिटिशर्स अपना फैसला वापिस लेने के बारे में सोचने लगे लेकिन तभी 1910 में जॉर्ज 5th इंग्लैण्ड के राजा बन गए। राजा बनते ही उनके सामने था बंगाल का मुद्दा। इस समय भारत के वायसराय थे लॉर्ड हार्डिंग। 1911 में जॉर्ज 5th भारत आकर बंगाल के विभाजन को वापस लेने वाले थे। लेकिन हार्डिंग को किसी ने सुझाव दिया कि बंगाल का बंटवारा रद्द किए बिना भी बात बन सकती है।

हार्डिंग को ये सुझाया गया कि राजधानी को किसी ऐसी जगह शिफ्ट कर दी जाए जहां इस विरोध का स्वर भी न पहुंच पाए। हार्डिंग इस बात के लिए तैयार हो गए। ये तय किया गया कि नई राजधानी की घोषणा खुद किंग जॉर्ज करेंगे। और जहां ब्रिटेन के राजा बंगाल का विभाजन वापस लेने वाले थे वहीं पर 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा कर दी गई। दिल्ली में एक लाख लोगों के सामने किंग जॉर्ज की ताजपोशी की गई। किंग जार्ज 5th ने एक कागज़ हाथ में लिया और पढ़ते हुए कहा-

“भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा”

नई राजधानी बनीं दिल्ली

15 दिसंबर को नई राजधानी की आधारशिला रखी गई। ब्रिटिश हुकूमत ये चाहती थी कि एक पूरा नया शहर बसाया जाए। अंग्रेज चाहते थे कि नई राजधानी मुगलिया दिल्ली से अलग हो। इसीलिए शुरूआत में अस्थाई राजधानी बनाई गई जिसे अब ओल्ड सेक्रेट्रिएट कहते हैं। नई राजधानी की जिम्मेदारी खास लोगों को दी गई। मैल्कम हेली तब दिल्ली के चीफ कमिश्नर बनाए गए और नए शहर के निर्माण की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। अंग्रेजों के ज़हन में एक बड़ा सवाल था कि नई राजधानी कहां बनाई जाए?

मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लैंडसीयर

लुटियन्स बनें दिल्ली के वास्तुकार

आज की दिल्ली उस समय पंजाब का हिस्सा थी। नई राजधानी के लिए इस क्षेत्र के 128 गांवों चुना गया। लगभग सवा लाख एकड़ जमीन खाली करवाई गई। 912 में मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लैंडसीयर लुटियन्स और हरबर्ट बेकर को नई राजधानी का डिज़ाइन बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। पहले अंग्रेज चाहते थे कि कोरोनेशन पार्क, जहां किंग जॉर्ज की ताकपोशी हुई थी, वहीं पर नई राजधानी बनाई जाए लेकिन लुटियन्स इससे सहमत नहीं हुए। लुटियन्स ने अपने रिपोर्ट में कहा कि ये इलाका तंग है जिससे मलेरिया फैलने का खतरा बना रहता था। कई महीनों की तलाश के बाद वायसराय और कमिश्नर हेली ने लुटियंस को रायसीना हिल्स एरिया का सुझाव दिया। कोरोनेशन पार्क में किंग जॉर्ज की रखी गई आधारशिलाएं रायसीना हिल्स लाई गयी और नई राजधानी का काम शुरू हुआ। वाइसरॉय हाउस जो आज राष्ट्रपति भवन है, इसे बनाने में 17 साल और इंडिया गेट का निर्माण 10 साल में पूरा हुआ। संसद का डिज़ाइन लुटियंस और बेकर ने बनाया। क्या आप जानते हैं संसद का डिजाइन किससे प्रेरित था, अगर नहीं तो seepositive के चौसठ योगिनी मंदिर के इतिहास को जरूर देखें।

राजधानी दिल्ली का अब तक का सफर

दिल्ली आधिकारिक तौर पर राजधानी 1931 में बनीं। तब तक अस्थायी राजधानी शाहजहांबाद थी। नई राजधानी बनने के बाद इसे ही पुरानी दिल्ली कहा जाने लगा। नई दिल्ली का उद्धघाटन फरवरी में 1931 में वाइसरॉय लार्ड इरविन ने किया।

अगस्त 1947 में आजादी के बाद भी राजधानी बदलने पर कोई खास पहल नहीं की गई। देश संभालने वाली राष्ट्रीय सरकार ने दूसरे शहर के बारे में नहीं सोचा। दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। आज भारत की राजधानी नई दिल्ली कई गुना विस्तारित हो चुकी है। परिवर्तन के दौर से गुजरती आज की दिल्ली देश की राजनीतिक, आर्थिक और संस्कृति राजधानी के रूप में भी स्थापित है। इतिहास की जीवंत कहती दिल्ली आज अपना गौरव पताका लहरा रही है। और दिल्ली का इतिहास सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।

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Dr. Kirti Sisodhia

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