बिहार की स्वसहायता समूह की महिलाएं अपनी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं। वे सरकार की योजनाओं का लाभ लेकर अपने साथ-साथ अपने परिवार की जिंदगियां बदल रही हैं। ये महिलाएं या तो खुद का व्यवसाय कर रही हैं या फिर समूह के साथ मिलकर आर्थिक सशक्तिकरण की तरफ बढ़ रही हैं। जानते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं की प्रेरणादायी कहानियां…
खुद के साथ दूसरों की भी जिंदगी बदल रही है कविता
बिहार के एकमा गांव की रहने वाली कविता देवी सुपौल जिले की हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, कविता एक नहीं बल्कि पांच आजीविका गतिविधियों – सब्जी की खेती, डेयरी, बकरी पालन, कबूतर पालन और जनरल स्टोर को अपनाकर एक सफल उद्यमी बन चुकी हैं। कविता ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है बल्कि वे दूसरी महिला किसानों को भी सशक्तिकरण का रास्ता दिखा रही हैं।
2014 में आयोजित कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन्स (CRP) ड्राइव में कविता ने भाग लिया, यहीं से उनकी जिंदगी बदली। लाभ के बारे में जानने के बाद उन्होंने 9 दिसंबर, 2014 को बाबा ब्रह्म जीविका एसएचजी में शामिल होने का फैसला लिया। बैठकों के दौरान, उन्हें विभिन्न प्रकार की आजीविका के बारे में बताया गया। प्रेरित होकर उन्होंने स्वयं सहायता समूह से 10,000 रुपये ऋण लेकर अपने घर पर एक छोटे से जनरल स्टोर की शुरूआत की। दुकान से प्रतिदिन 100 रुपये से
200 रुपये कमाकर उन्होंने न सिर्फ एसएचजी का कर्ज चुकाया, बल्कि अन्य दैनिक जरूरतों के लिए भी इसका उपयोग भी किया। कविता ने 2017 में फिर से भैंस खरीदकर डेयरी के लिए एक और उद्यम के लिए ऋण का लाभ लिया जिससे उन्हें प्रतिदिन 240 रुपये तक की कमाई करने का मौका मिला। इन सभी के अलावा कविता सब्जी, बकरी और कबूतर पालना भी करती हैं।
अनोखी है पटना पूजा की कहानी
पटना जिले के पालीगंज प्रखंड के अकबरपुर गांव की जीविका स्वयं सहायता समूह की सदस्य पूजा देवी किसी नायिका से कम नहीं हैं। उनके परिवार का पालन-पोषण पति और ससुर करते थे। पर जब पूजा के ससुर बीमार पड़ गए, तो परिवार ने अपनी सारी बचत चिकित्सा खर्चों में लगानी शुरू कर दी। परिवार की मदद के लिए पूजा ने घरेलू सहायिका के रूप में काम करना शुरू किया। तब वे सिर्फ 500 रुपये ही कमा रही थी, जो परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए कम थे।पूजा को जून 2017 में जीविका एसएचजी से जुड़ने का मौका मिला। जिससे उनकी जिंदगी बदल गई। पूजा का चुनाव जीविका में एक सामुदायिक संघटक के रूप में हुआ। जब वह लगभग एक साल तक इस भूमिका में काम कर रही थीं, तब उन्हें बीसी सखी मॉडल के बारे में जानकारी हुई। समुदायों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के विचार ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने सीएसपी स्थापित करने के लिए ग्राम संगठन से 60,000 रुपये का लोन लिया। संचालन और बीसी सखी की भूमिका पर प्रशिक्षण प्राप्त कर पूजा ने दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक के तहत लाइसेंस प्राप्त सीएसपी खोलने की जिम्मेदारी ली। इसके बाद, पूजा ने जागरूकता पैदा करने और संभावित ग्राहकों से जुड़ने के लिए घर-घर अभियान की शरूआत की। कड़ी मेहनत आखिरकार रंग लाई और ग्राहकों की संख्या बढ़ी। पूजा आज आर्थिक रूप से केवल सशक्त ही नहीं है बल्कि कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं।