विराम-एक नई शुरुआत


बीते कुछ दिनों ने जीवन को किताब के उन पन्नो से रूबरू करवाया है, जो हम सभी तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में पलटना भूल जाते हैं। कभी-कभी सिर्फ सरसरी निगाहों से ऊपरी सतह पर से ही बिना महसूस किये निकाल लेते हैं।

इन बीते दिनों में “घर” सही मायनों में घर लगा, जब सबने साथ मिल कर वक्त बिताया, अपने आप से मुलाकात का वक्त, हर कोई निकाल पाया। जब खुद को थोड़ा सा पहचाना तो जीवन जीने का तरीका भी थोड़ा सा बदला।

एक दिन अचानक कहीं सफर में एक निजी FM की स्लोगन की लाइन सुनी। उसने जैसे खुद से रिश्ते को और मज़बूत करने की और एक वजह दे दी।

“औरों को छोड़, खुद को चुनो”

अपनी सुनो…।

जैसे ज़िन्दगी खुद कह रही हो कि औरों को सुनने या खुश करने से पहले खुद को सुनो, खुद को खुश रखो। हमारे पास जो होगा वही हम दूसरों को बाँट सकेंगे।

जैसे एक अनुछेद को पढ़ने और समझने के लिए विराम चिह्न की ज़रूरत होती है, विराम की ज़रूरत होती है, ठीक वैसे ही यह दौर हम सभी की ज़िन्दगी में एक विराम लाया है, जहाँ से हम सभी अपने आप को re-define कर सकते हैं। जीवन में कभी-कभी बड़ी गूढ़ रहस्य की बातें बस यूँ ही रूबरू हो जाती हैं।

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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