
“बस यूँ ही” के जरिये आपसे वो बातें साझा करने का सिलसिला शुरू किया हैं जो अचानक ही हमारे सामने सामान्य तरीके से आती हैं और गहराई से सीख दे जाती हैं। कहते भी हैं ना की ज़िन्दगी की गहराई कई बार सामान्य सी दिखने वाली बातों में होती हैं। जरुरत सिर्फ उन्हें महसूस कर पाने की होती हैं।
कहानियाँ को हम नहीं ढूंढते, कहानियाँ हमे खुद ढूंढ लेती हैं। जिंदगी को हमें जिस अनुभव से रूबरू करवाना होता है, वो बहाने ढूंढ ही लेती हैं।
वैसे तो सब कुछ अच्छा चल रहा हैं, फिर भी ना जाने क्यों एक दिन थोड़ा मन भारी सा था। अक्सर ऐसा होता हैं कि हमें समझ ही नहीं आता कि कभी मन अपने आप खुश, तो कभी अपने आप बूझा सा रहता हैं।
उस दिन ढूंढने से वजह मिली की शायद लगातार व्यस्तता के कारण शायद थकान से मन कुछ बोझिल सा था। Office जाते वक्त कार की खिड़की से देखते हुए, ना जाने क्या सोच रही थी कि अचानक सिगनल पर रुकी कार से देखा कि एक भिखारी जिसकी उम्र तकरीबन 40 – 45 होगी, जिसके कपड़े अस्त-वस्त थे, बाल बिखरे थे, देखने से मालूम होता था जैसे कई दिनों से नहाया नहीं हो। लेकिन मजे की बात तो ये हैं कि वो भीख नहीं माँग रहा था।
मस्ती से एक युवा की तरह फुदक-फुदक कर सड़क के किनारे लगी दुकानों से समान उठाकर, फिर रख रहा था। दुकानदारों के बर्ताव से यह कतई नहीं लग रहा था कि वे परेशान या गुस्सा थे। फिर हलकी सी बारिश की बौछारें शुरू हुई , जहाँ सब लोग बारिश से बचने की जगह तलाश रहे थे । उसने एक दूकान से टोपी उठाई , दुकानदार और उसके बीच बिन बोले जैसे ये बात हुई कि भिखारी ने टोपी लेने की अनुमति मांगी और दुकानदार से सहमति दी।
उस टोपी को पहन कर , चहकर, फुदकर जिस ख़ुशी से वो लहराता वहाँ से गया , अपनी निश्चल ख़ुशी के छींटें मुझपर भी बरसा गया।
उसे उस तरह देख कर अव्वल तो उसे भिखारी कहने का मन नहीं किया, जिसके पास कुछ नहीं वो ख़ुशी के मायने बता रहा था, तो सब कुछ होने पर भी कभी मन उदास क्यों होता हैं। मन उदास होना कोई बुरी बात नहीं , यह भाव हमारे जीवन का हिस्सा और अभिव्यक्ति हैं, लेकिन हर पल में ख़ुशी को ढूंढ ही लेना उस शक्श ने उस दिन बस यूँ ही सीखा दिया ।