Surhutt: छत्तीसगढ़ में त्योहारों को मनाने का अपना अलग तरीका है। हालांकी छत्तीसगढ़ एक छोटा राज्य माना जाता है । लेकिन इस छोटे राज्य में एक ही त्योहा को अलग-अलग इलाकों में अलग तरह से मनाया जाता है। यहां रहने वाले जाति और उपजातियां हर त्योहार में अपना रंग डालते हैं। दिवाली जो देश का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है । छत्तीसगढ़ में भी 5 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन ये त्योहार पारंपरिक रूप से ‘सुरहुत्ती’ कहलाता है।
क्या है “सुरहुत्ती’ के मायने?
सुरहुत्ती दो शब्दो को मिलाकर बनाया गया है। सुर यानी सूरज और हुत्ती यानी तेज या प्रकाश। अब आप सोचेंगे की दिवाली का सुर्य की किरणों से क्या संबंध । तो आपको बता दें छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान देश है। यहां लगभग हर त्योहार को खेती किसानी से जोड़कर देखा जाता है। इसलिए दिवाली भी यहां मां लक्ष्मी की पूजा से ज्यादा फसलो के पकने से जुड़ा हुआ है।
सूर्य के तेज का उत्सव सुरहुत्ती
दिवाली का समय ठीक धान के पकने का समय होता है। जब धान को तेज धूप की जरूरत होती है। सुरहुत्ती उसी तेज धूप का उत्सव है जिसमें धान समय से पक कर तैयार हो जाते हैं। वहीं अंधेरा होने के बाद जलाए गए दिए सिर्फ रोशनी के लिए नहीं हैं। छत्तीसगढ़ में ये उपाय है उन कीट पतंगों का जो पके धान को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। दियों को रोशनी से आकर्षित होकर कीट-पतंगे खेत से गांव की तरफ आते हैं और दिए की आग से खत्म होते चले जाते हैं।
काफी पहले शुरु हो जाती है तैयारी
गांवों में नवरात्री के समापन के साथ ही सुरहुत्ती की तैयारी शुरु हो जाती है। दिवाली की तैयारियों की शुरुआत होती है ‘अगासदिया’ यानी आकाश दीप से। दशहरे के बाद ही लगभग घरों में अगासदिया जलने लगता है। मतलब समझ जाइए दिवाली नजदीक है। अगासदिया, एक दिया ही होता है जिसे बांस के सहारे घरों कीं ऊंचाई पर लगाया जाता है। दशहरे से शुरु होक एकादशी तक घरों में अगासदिया जलाया जाता है।