Mahakumbh 2025: गंगा नदी भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और प्राकृतिक धरोहरों में से एक है। महाकुंभ जैसे विशाल आयोजनों में भी गंगा अपनी पवित्रता और स्वच्छता बनाए रखती है। लेकिन यह प्रक्रिया कैसे संभव होती है? आइए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे समझते हैं।
गंगा का सेल्फ-प्यूरिफिकेशन सिस्टम
गंगा नदी में एक अद्वितीय जैविक तंत्र है जिसे सेल्फ-प्यूरिफिकेशन सिस्टम कहते हैं। इस प्रणाली में सूक्ष्मजीव जैविक और रासायनिक प्रक्रियाओं के जरिए पानी को साफ करते हैं। यह तंत्र गंगा को अन्य नदियों की तुलना में अधिक स्वच्छ और टिकाऊ बनाता है।
शहरों और दबाव से निपटने के उपाय
शहरों से निकलन वाले गंदे पानी का नदी पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। हालांकि, वर्तमान समय में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के जरिए पानी को साफ करके गंगा में छोड़ा जाता है। महाकुंभ जैसे आयोजनों के दौरान, जब लाखों लोग स्नान करते हैं, तो प्रशासन नदी की सफाई के लिए विशेष इंतजाम करता है। इसमें फूल और अन्य कचरे को हटाने के लिए नियमित व्यवस्था शामिल है।
हिमालय की जड़ी-बूटियों का योगदान
गंगा नदी का स्रोत हिमालय है। वहां की प्राकृतिक जड़ी-बूटियां गंगा जल को विशेष गुण प्रदान करती हैं। यही कारण है कि गंगाजल को बोतल में वर्षों तक सहेज कर रखने पर भी यह खराब नहीं होता।
नमामि गंगे परियोजना का प्रभाव
सरकार ने गंगा की पवित्रता और स्वच्छता बनाए रखने के लिए नमामि गंगे परियोजना शुरू की है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य गंगा में जाने वाले गंदे पानी की मात्रा को नियंत्रित करना और नदी को स्वच्छ बनाए रखना है।
वैज्ञानिक अनुसंधान का केंद्र
गंगा नदी का पानी वैज्ञानिकों के लिए शोध का प्रमुख विषय है। इसके अद्वितीय गुण, जैसे लंबे समय तक शुद्ध रहने की क्षमता, इसे अन्य नदियों से अलग बनाते हैं।
Positive सार
गंगा नदी की पवित्रता और स्वच्छता का राज उसकी जैविक प्रक्रियाओं, प्रशासनिक उपायों और हिमालय की प्राकृतिक संपदाओं में छिपा है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी एक अनमोल धरोहर है।