“मेरी सबसे बड़ी ताकत यही है कि, जो ठान लेता हूं उसे पूरा करने के लिए मैं प्रतिबद्ध रहता हूं। मुझे नहीं लगता है कि कोई भी परेशानी हमें रोक सकती है अगर हम निरंतर प्रयास करते रहें।“
राजू वाघ, असिस्टेंट कमांडेंट, CRPF
इन बातों से जब राजू वाघ ने मुझसे बातचीत शुरू की तो सहसा मुझे लगा कि वाकई में ठान लेने में बहुत बड़ी ताकत होती है। तभी तो हर ठान लेने वाला व्यक्ति अपनी मंजिलों को जरूर पा लेता है। राजू वाघ वर्तमान में CRPF के असिस्टेंट कमांडेंट हैं और बस्तर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने UPSC CSE 2024 में सफलता हासिल करते हुए 817वां रैंक हासिल किया है। उनकी कहानी में खास बात ये है कि उन्होंने अपनी तैयारी के दौरान नक्सलियों से दो-दो हाथ भी किए। कई सफल सर्च ऑपरेशन्स का हिस्सा भी रहे। जहां एक तरफ कई युवा इस उलझन में ही गुजार देते हैं कि उन्हें तैयारी के लिए नौकरी छोड़नी पड़ेगी। बड़ी जिम्मेदारियों के साथ वो तैयारी नहीं कर पाएंगे। वहीं राजू वाघ उन सभी के लिए किसी प्रेरणा से कम नही। उनसे बातचीत के कुछ अंश आपसे साझा कर रहे हैं….
प्रारंभिक शिक्षा-जीवन कैसा रहा?
मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नासिक से की है। स्कूलिंग नवोदय विद्यालय से पूरी की फिर NIT नागपुर से B.TECH किया। पहली नौकरी कोल इंडिया में असिस्टेंट मैनेजर की रही। लेकिन शुरू से ही देश के लिए कुछ करना चाहता था। इसीलिए UPSC की तैयारी शुरू की। पहले कुछ अटेम्प्ट में इंटरव्यू तक पहुंचा पर सिलेक्सन नहीं हो पाया।
सेना में कैसे आए?

UPSC की तैयारी के दौरान ही मैंने UPSC CAPF की परीक्षा दी और मेरा चयन हो गया। देश सेवा तो करनी ही थी तो सेना के जरिए ही सही। बस फिर क्या था ज्वाइन कर लिया और पहली पोस्टिंग चांदामेटा, बस्तर मिला।
कैंप में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, इसकी वजह क्या थी?
चांदामेटा मेरी पहली पोस्टिंग थी। तब वो क्षेत्र नक्सल प्रभावित था, अब नक्सल मुक्त हो चुका है। तो उस दौरान माओवादियों ने स्कूल तोड़ दिया था। मैंने देखा कि गांव में कोई स्कूल नहीं है। इसके बाद मेरी कोशिश रही कि कैंप में ही बच्चों को पढ़ाया जाए। हालांकि मुझे स्थानीय बोली आती नहीं थी, तो मैंने एक साथी सहायक से मदद ली। कैंप में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे साथी अधिकारियों ने भी मदद की। बाद में प्रशासन की मदद से वहां स्कूल खुल गया।
बच्चों को पढ़ाने के पीछे आपकी क्या सोच थी?

आज जब वहां पर स्कूल देखता हूं तो खुशी और संतुष्टि मिलती है। कि जिसे एक छोटी शुरूआत के रूप मे शुरू किया गया था आज वहां बच्चे पढ़ पा रहे हैं। इसे शुरू करने के पीछे यही उद्देश्य था कि ये बच्चे तो बहुत कुछ झेल गए पर इनकी आने वाली पीढ़ियों को पढ़ने का मौका मिले और ये पढ़ लिखकर बेहतर जीवन की तरफ बढ़े।
बस्तर में पोस्टिंग के दौरान आपकी CSE की तैयारी कैसी रही?
बस्तर में पोस्टिंग के दौरान मैं सैटल हो चुका था। यहां काम करना, ग्रामीणों को मुख्यधारा से जोड़ना उनकी सुरक्षा करना। राज्य और देश की सेवा करना सब अच्छा लग रहा था। बीच में काम की ऐसी व्यस्तताएं हुई की मैंने तैयारी छोड़ दी थी।
तैयारी छोड़ने के बाद फिर से कैसे शुरूआत हुई, आपकी प्रेरणा क्या थी?

बस्तर में काम करने के दौरान मैं जमीनी रूप से लोगों के करीब रहा। आदिवासियों की जरूरतों को समझता था। मुझे लगता था कि बस मैं किसी तरह से इनके काम आ जाऊं पर सेना में रहते हुए हम कुछ हद तक ही लोगों की मदद कर सकते हैं। यानी कि मदद का दायरा सीमित होता है। काम के दौरान मैंने बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार सर को देखा। उनके पास जो पॉवर था लोगों की मदद करने का। उसने मुझे प्रेरित किया। मैंने सोचा कि अगर मैं इस पद पर होता तो मैं सीधे लोगों की मदद कर सकता हूं। बस यहीं से मैं दोबारा प्रेरित हआ और तैयारी शुरू की।
पढ़ने की स्ट्रैटजी क्या थी?
मेरी पोस्टिंग एक ऐसी जगह थी, जहां नेटवर्क बिल्कुल नहीं होता। इसे मैंने आपदा में अवसर की तरह लिया यानी कि कम संसाधन लेकिन कम डिस्ट्रैक्शन भी। कभी-कभी समय न के बराबर मिला, जैसे किसी ऑपरेशन में हैं तो दिनभर निकल जाता था। ऐसे में मैं कोशिश करता था कि काम पर निकलने से पहले थोड़ा पढ़ लूं या फिर वापस आकर जितना समय मिलता था उसमें पढ़ाई कर लूं। निरंतरता (Consistency) ही मेरी सबसे बड़ी स्ट्रैटजी थी। मुझे लगता है असफल होने का सबसे बड़ा कारण ही ये हो सकता है कि वो लोग रोज नहीं पढ़ते हैं। भले ही कम कम पढ़ाई हो लेकिन रोज पढ़ने से सफलता के चांसेस ज्यादा हो जाते हैं।
तैयारी के दौरान कभी हताशा या नकारात्मक ख्याल आए?
मेरी नौकरी का नेचर है कि कई बार अनचाही स्थितियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नकारात्मक होना स्वाभाविक है। नेगेटिव सिचुएशन हर किसी की जिंदगी में आते हैं। खासकर जब आप एक aspirant हों तब और ज्यादा। लेकिन अगर ठान लो और उस पर मेनहत करो तो सफलता जरूर मिलती है। मेरे साथ भी यही हुआ कई दफा नेगेटिव हुआ लेकिन पता था क्या करना है और क्या चाहता हूं। मेरी सफलता में मेरी पत्नी का भी बहुत बड़ा रोल है। उन्होंने मेरी तैयारी में मेरा काफी साथ दिया। उनके बनाए नोट्स मेरे काम आए।
आपकी पत्नी और आपने साथ मिलकर तैयारी की?
हां मेरी पत्नी ने भी बहुत साथ दिया। तैयारी बीच में ही छोड़ने पर उन्होंने ही प्रेरित किया। उनके बनाए नोट्स से भी मदद मिली। हम दोनों ने साथ में इंटरव्यू दिया था।
आपका ऑप्शनल सब्जेक्ट क्या था?
मैंने एंथ्रोपोलॉजी ऑप्शनल लिया था। यहां जनजातियों को मैंने करीब से देखा। मेन्स के दौरान इन पर तैयार केस स्टडी काम आई।
आपका इंटरव्यू कैसा था? क्या बस्तर से जुड़े सवाल पूछे गए?

इंटरव्यू के दौरान मुझसे नक्सल समस्या पर काफी सवाल पूछे गए। भारत में सिर्फ छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा नक्सल समस्या क्यों है? ऐसे सवालों पर मैंने जवाब दिया था, कि अशिक्षा, गरीबी और मुख्यधारा से नहीं जुड़े होने की वजह से आदिवासी भ्रमित हो जाते हैं। अपने अधिकारों के लिए भी वो लोग ऐसा करते हैं। पर सरकार इस पर काफी काम कर रही है, शिक्षा, सड़क, बुनियादी सुविधाओं की पहुंच अब नक्सल समस्याओं को धीरे-धीरे खत्म कर रही है। इस तरह के जवाब मैंने दिए थे।
आपको जब अपने चयन की सूचना मिली तो आपका क्या रिएक्शन था?
कर्रेगुट्टा पहाड़ पर मैं नक्सल अभियान पर था। वापस आने पर मेरे साथियों ने मुझे इसकी सूचना दी। इसके अलावा मैंने देखा कि मेरे फोन पर कई मैसेजेस और कॉल्स थे। मैं खुश था। लेकिन ये रैंक इतना भी अच्छा नहीं है मैं और कोशिश करूंगा।
Aspirants को क्या संदेश देना चाहेंगे?
कोशिश करते रहिए सफलता जरूर मिलेगी। निरंतरता और दृढसंकल्प सबसे जरूरी चीज है।
Note: जैसा कि उन्होंने बातचीत के दौरान ऋषिता दीवान को बताया।