Devi Mandir of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ जितना प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है, उतनी ही समृद्ध है यहां की धार्मिक विरासत। छत्तीसगढ़ में देवियों के कई प्राचीन मंदिर स्थापित है। प्रदेश में शक्ति पीठ मंदिर भी हैं। आइए जानते हैं माता के कुछ प्राचीन मंदिर और उनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में।
बम्लेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़
बम्लेश्वरी माता का मंदिर राजनांदगांव के डोंगरगढ़ में स्थित है। यहां माता का बगुलामुखी रूप की पूजा होती है। बम्लेश्वरी माता 2 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजित हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख मंदिरों में से एक इस मंदिर में लोगों की गहरी आस्था है। साल के दोनों नवरात्री में यहां बड़ा मेला लगता है।
महामाया मंदिर, रतनपुर
मां महामाया का मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। यह मंदिर बिलासपुर के रतनपुर में स्थापित है। यहां दो माताएं एक के पीछे एक स्थापित हैं। कहा जाता है दोनों बहनें हैं। एक माता सामने की तरह हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। जबकी दूसरी माता पीछे स्थापित हैं जिनका सिर्फ मुख दिखाई देता है। मान्यता है माता के क्रोध की वजह से उन्हें पीछे रखा गया है। जबकी सौम्य स्वरूप वाली माता उनके सामने बैठी हुई हैं।
दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी मां
बस्तर के दंतेवाड़ा में स्थापित है मां दंतेश्वरी का मंदिर। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां पर माता सती का दांत गिरा था। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के प्रमुख देवी मंदिरों में से एक है। दंतेश्वरी माता बस्तर राज घराने की कुल देवी हैं। मंदिर शंकिनी-डंकिनी नदी के किनारे बना हुआ है। नवरात्री में मंदिर में दूसरे राज्यों से भी लोग दर्शन के लिए आते हैं।
चंद्रहासिनी माता
चंद्रहासिनी माता का मंदिर महानदी के किनारे स्थित है। यह मंदिंर जांजगिर चांपा जिले के चंद्रपुर नाम की जगह पर बनाया गया है। माता का नाम उनकी चंद्रमा की तरह मुस्कान की वजह से पड़ा है। यहा स्थापित माता की मूर्ति में चांदी का चंद्रमा लगा हुआ है। इस चंद्रमा की वजह से माता का चेहरा हंसता हुआ नजर आता है। इसलिए माता को चंद्रहासिनी कहा जाता है।
मड़वा रानी मंदिर कोरबा
मड़वा रानी माता का मंदिर कोरबा जिले में पड़ता है। इस मंदिर में स्थापित माता स्वयंभू मानी जाती है। यह मंदिर छोटे पहाड़ पर स्थापित है। मड़वारानी में मां का 5 पिंडी रूप स्थापित है। कहा जाता है यहां माता अपनी 4 बहनों के साथ विराजित है। नवरात्री में माता के इस मंदिर में भक्तों भी भारी भीड़ रहती है।
महासमुंद का खल्लारी मंदिर
खल्लारी माता का मंदिर महासमुंद में स्थित है। कहा जाता है इस मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। यहां मिलने वाले बड़े पद चिन्ह को पांडवों का पद चिन्ह माना जाता है। इस मंदिर को लेकर यह मान्यता भी है कि यहां भीम और हिडिम्बा का विवाह हुआ था। मंदिर छोटी पहाड़ी पर स्थित है। नवरात्री में हर साल यहां मेला लगता है।
अंगार मोती मंदिर, धमतरी
अंगार मोती माता का मंदिर धमतरी में है। अंगार मोती माता को वनदेवी भी कहा जाता है। कहते हैं यहां माता का धड़ अलग स्थान पर और पैर अलग स्थान पर स्थापित है। अंगारदेवी को 52 गांवों के लोग अपनी ग्राम देवी मानते हैं। कहा जाता है माता ने इन 52 गांवों को डूबने से बचाया था। मंदिर गंगरेल डैम के पास बनवाया गया है।
चंडी मंदिर बागबहरा
महासमुंद के बागबहरा में स्थापित है माता चंडी का मंदिर। यह मंदिर घुंचापाली नाम की जगह पर सुंदर पहाड़ियों और प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां की पूजा में जंगल के भालू भी शामिल होते हैं। आरती के बाद पुजारी इन भालुओं को प्रसाद भीखिलाते हैं। प्रसाद खाने के बाद भालू वापस जंगल चले जाते हैं। आज तक इन भालुओं ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।
गंगा मैया मंदिर, झलमला
बालोद जिले के झलमला में स्थित गंगा मैया का मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर से जुड़ी कहानी के अनुसार एक मछुआरा मछली पकड़ने तालाब गया हुआ था। मछुआरे के जाल में देवी की प्रतिमा फंसी। मछुआरे ने उसे पत्थर समझ कर वापस तालाब में फेंक दिया। कुछ दिनों बाद बैगा को माता ने सपने में आकर कहा कि मैं तालाब के अंदर हूं, मुझे निकालकर प्राण प्रतिष्ठा कराओ। जिसके बाद मूर्ति को निकाला गया और प्राण प्रतिष्ठा करा गई।