Bhairav Baba Temple: छत्तीसगढ़ के सिद्ध पीठों में एक मंदिर है रतनपुर की मां महामाया। इस मंदिर के पास ही विराजे हैं भैरव बाबा। कहते है किसी भी माता की दर्शन तब तक पूरा नहीं होता जब तक बाबा भैरव के दर्शन ना कर लिए जाएं। मां महामाया के दर्शन के बाद भी यहां के भैरव बाबा का दर्शन जरूरी माना जाता है। भैरव बाबा का यह मंदिर महामाया के दर्शन से तो जुड़ा ही है, लेकिन इसकी अपनी भी कई खासियत हैं। आज हम यहां उसी खासियत के बारे में बताने जा रहे हैं।
भैरव अष्टमी में नहीं चढ़ती मदिरा
बाबा भैरव को शिवजी का पांचवा अवतार माना जाता है। भैरव अष्टमी के दिन सभी देवी मंदिरों और काल भैरव के मंदिर में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सभी मंदिरों में बाबा को मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसे भक्तों में प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है। लेकिन रतनपुर के भैरव बाबा का मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है जहां भैरव अष्टमी को मदिरा नहीं चढ़ाई जाती है। कहा जाता है इस दिन काल भैरव बालक रूप में विराजित होते हैं इसलिए इस दिन यहां सात्विक रूप से पूजा का विधि विधान पूरा किया जाता है।
भव्य रूप में होता है भैरव अष्टमी उत्सव
रतनपुर के भैरव बाबा मंदिर में भैरव अष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार यह उत्सव
(2024) 21 नवंबर से शुरु हुआ है और 29 नवंबर तक चलेगा। इन नौ दिनों में महायज्ञ, 151 कन्याओं का भोज और महा भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। भैरव अष्टमी के एक दिन पहले ही बाबा को स्नान कराकर श्रृंगार किया जाता है और फिर पूरे विधि विधान से पूजा होती है।
काल भैरव में क्यों चढ़ती है शराब?
बाबा काल भैरव को तामसिक प्रकृति के देवता माना जाता है। कहा जाता है काल भैरव हर वक्त युद्ध के मैदान में रहते हैं इसलिए उन्हें मदिरा पान कराया जाता है। युद्द के मैदान में असुरों और बुराइयों से लड़ने के लिए उन्हें अपनी तामसिक प्रवृत्ति को बनाए रखना जरूरी होता है। इसलिए बाबा काल भैरव को मदिरा का भोग लगाकर उनकी शक्ति को बढ़ाया जाता है।