Ashtavinayak: अष्टविनायक में कौन हैं पांचवे गणपति?

Ashtavinayak: अष्टविनायक (Ashtavinayak)में पांचवें क्रम में चिंतामणि गणपति का स्थान है। चिंतामणि गणपति का मंदिर थेऊर नाम के गांव में है। यह गांव पुणे से 30 किलोमीटर दूर हवेली तालुका में पड़ता है। कहते हैं चिंतामणि गणेश (chintamani ganesh)के दर्शन से सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं। इस मंदिर में आकर मन को शांति मिलती है। इसलिए यहां विराजित गणपति को ‘चिंतामणि गणेश’ कहते हैं।

संगम पर है मंदिर

चिंतामणि गणपति का मंदिर तीन नदियों के संगम पर स्थित है। संगम में भीम, मुला और मुथा नदियां मिलती हैं। मंदिर के पीछे एक तालाब है जिसे ‘कंडतीर्थ’ (kandtirtha)कहते हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार उत्तर मुखी है। गर्भगृह के बाहर एक लकड़ी का कक्ष बना हुआ है। इस कक्ष को माधवराव पेशवा ने बनवाया था। मुख्य मंदिर का निर्माण धरणीधर महाराज देव ने करवाया था।

चिंतामणी की हैं हीरे की आंखें

यहा स्थापित चिंतामणी गणेश जी पूर्व मुखी हैं। उनकी आंखों में हीरे जड़े हुए हैं। गणपति जी का सूड़ बायीं ओर मुड़ा हुआ है। कहा जाता है भगवान गणेश ने कपिला ऋषि (kapil muni)को उनसे छीना हुआ चिंतामणि हीरा वापस दिलाया था। संत ने वो हीरा गणेश जी को ही समर्पित कर दिया था। उसी हीरे के नाम से गणेश जी को चिंतामणी गणपति कहा जाने लगा।

मंदिर से जुड़ी कथा

मंदिर से जुड़ी कथा के अनुसार, राजा अभिजीत और रानी गुनावती के बेटे गणराज ने कपिला मुनी से चिंतामणी छीन ली थी। इस मणी को गणपति (ganpati)जी ने गणराज से युद्ध करके कपिल मुनी को लौटाया था। भगवान इंद्र ने यह चिंतामणी कपिल मुनी को दी थी। यह मणी हर इच्छा पूरी करती थी। गणपति और गणराज के बीच युद्ध कदंब के पेड़ के नीचे हुआ था। इसलिए इस जगह को ‘कदंब तीर्थ’ भी कहा जाता है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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