Ganesh utsaw: गणेश उत्सव पर घर-घर पर गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। गणेश चतुर्थी (ganesh chaturthi) से पहले ही बाजार गणपति (ganpati) बप्पा की सुंदर मूर्तियों से सज जाता है। पर क्या आपको पता है अलग-अलग मूर्तियों के अपने अलग-अलग मायने होते हैं। गणेश जी की बैठने की मुद्रा से लेकर उनके सूंड के घुमाओ की दिशा का अलग महत्व होता है।
दाई ओर मुड़ी सूंड का क्या अर्थ है?
गणेश जी की जिस मूर्ति का सूंड दाई दिशा में मुड़ा होता है वह दक्षिणावर्ती मूर्ति कहलाती है। दक्षिण दिशा सूर्य नाड़ी कहलाती है दक्षिण दिशा को यमलोग का मार्ग भी कहा जाता है। दक्षिणावर्ती गणेश जी की मूर्ति को सिर्फ मंदिरों में स्थापित किया जाता है। इनकी स्थापन विशेष विधि विधान से होती है। दक्षिणावर्ती गणपति जी की पूजा में भी कठिन नियमों का पालन करना होत है। इसलिए दाई ओर मुड़ी हुई सूंड वाले गणेश जी को घर में विराजित नहीं किया जाताहै।
बाई ओर मुड़ी हुई सूंड का क्या महत्व है?
बाईं ओर मुड़ी हुई सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति को वामावर्ती मूर्ति कहा जाता है। कहा जाता है ऐसी मूर्तियों में चंद्रमा का प्रभाव रहता है। ऐसी मूर्तियों से शीतलता मिलती है। वामावर्त यानी उत्तर दिशा धार्मिक तौर पर शुभ माना गया है। वामावर्ती मूर्तियो को गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना जाता है। गणेश पंडालों में ज्यादातार वामावर्ती मूर्तियां ही स्थापित की जाती है। इनकी सेवा और पूजा की विधि सरल होती है।
सीधी सूंड का क्या मतलब होता है?
आमतौर पर सीधी सूंड वाले गणेश जी की पूजा सामान्य लोग नहीं करते हैं। इनकी पूजा खास सिद्दी को पाने के लिए किया जाता है। सीधी सूंड वाले गणेश जी की पूजा, रिद्दि-सिद्दि, मोक्ष, समाधि, कुंडलिनी जागरण जैसी सिद्दी पाने वाले योगी करते हैं।