Vande Bharat Express: सिर्फ 52 सेकेंड में जीरो से 100 किलोमीटर की रफ्तार पकड़ने में बुलेट ट्रेन को वंदे भारत एक्सप्रेस ने पीछे छोड़ दिया। पिछले दिनों गांधीनगर-मुंबई के बीच ट्रायल के दौरान इसे देखकर हर किसी को गर्व महसूस हुआ होगा कि भारत अब स्वदेशी तकनीकों के लिए आत्मनिर्भर हो चुका है। वंदे भारत ट्रेन की खासियत के बारे में तो आप सभी जानते हैं, पर क्या आप उस शख्सियत के बारे में जानते हैं जिनकी मेहनत से ये साकार हो सका है।
सुधांशु मणि की मेहनत से हुआ है वंदे भारत का सपना साकार
भारतीय रेलवे के कामयाब मैकेनिकल अफसरों में से एक सुधांशु मणि और उनकी टीम की मेहनत ही है जिसकी वजह से आज भारत के पास हाईस्पीड वंदे भारत ट्रेन है। उन्होंने ही ही इंटीग्रेटेड कोच फैक्ट्री चेन्नई में जीएम रहते हुए बिना इंजन वाली सेमी हाइस्पीड ट्रेन को चलाने का सपना देखा और उसे पूरा भी किया है। इस सपने को सिर्फ 18 महीने की दिन रात की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने साकार किया, जिसे रेलवे ने पहले ट्रेन 18 का नाम दिया था, लेकिन बाद में इसे वंदे भारत एक्सप्रेस के रूप में पहचान मिली।
साल 2016 की बात है, जब सुधांशु मणि इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई के महाप्रबंधक बने। इसी साल रेलवे विदेश से सेमी हाइस्पीड ट्रेन को आयात करने के बारे में सोच रहा था। तब सुधांशु मणि ने विदेशों से आने वाली सेमी हाइस्पीड ट्रेन से आधी लागत पर स्वदेशी तकनीक से यूरोप स्टाइल वाली सेमी हाइस्पीड ट्रेन तैयार करने की अपनी सोच रखी। जो सेल्फ प्रपोल्ड हो साथ ही 180 किमी. की गति से दौड़ने की भी क्षमता रखती हो।
बिना किसी ग्लोबल सहायता के के इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के बारे में सुधांशु का विचार रेलवे बोर्ड के अफसरों को पसंद नहीं आया।य़ लेकिन सुधांशु मणि के प्रयासों से उस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली। अब सबसे बड़ी चुनौती वंदे भारत ट्रेन के लिए सेमी हाइस्पीड की क्षमता की बोगियों का फ्रेम तैयार करने की आ रही थी। यह तलाश कानपुर में खत्म हुई। सुधांशु मणि के प्रयासों से यहां की एक कंपनी ने ट्रेन 18 की बोगियों का फ्रेम बनाकर आइसीएफ को सौंप दिया।
कड़ी मेहनत से पूरा हुआ वंदे भारत का सपना
इसके बाद फैक्ट्री के 50 रेलवे इंजीनियरों की टीम ने पहले तो लगातार काम करके चेयरकार श्रेणी वाली वंदे भारत एक्सप्रेस के डिजाइन को पूरा किया। डिजाइन तैयार करते समय सबसे बड़ी चुनौती इस बात की थी कि यह तेज एक्सलेशन के लिए जो इंजन बोगियों के नीचे लगाया जाना था, उसके लिए स्थान को डिजाइन कैसे किया जाए। लेकिन जैसे ही डिजाइन तैयार हुआ तो फैक्ट्री के 500 कर्मचारियों ने मिलकर 18 महीने में वंदे भारत का प्रोटोटाइप रैक अक्टूबर 2018 में पूरा कर दिया।
नए युग की शुरुआतः सुधांशु मणि
अपनी कामयाबी को लेकर सुधांशु मणि कहते हैं कि देश को वंदे भारत एक्सप्रेस मिलना एक नए युग की शुरुआत है। ट्रेन 18 की अपेक्षा इस वंदे भारत एक्सप्रेस की एक्सलेशन क्षमता को बढ़ाया है। साथ ही कई यात्री सुविधाएं भी इसमें जोड़ी हैं |