

भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ एक ऐतिहासिक और गर्व की बात है। जब भी यह गीत गूंजता है, तो हर देशवासी इसे गुनगुनाने लगता है। यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। आज हम आपको इसके पीछे की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं।
राष्ट्रीय गीत का प्रारंभ
वन्दे मातरम् गीत की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा की गई थी, जो भारतीय साहित्य के मशहूर लेखक और कवि थे। यह गीत उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में प्रकट हुआ था, जो 1882 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। इस गान के बोल ने भारतीयों की हृदयगर्भित भावनाओं को छू लिया था और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय गान के रूप में स्वीकार किया गया।
भारत की आजादी और गीत के संग्राम: वन्दे मातरम् का महत्व
वन्दे मातरम् के प्रथम दो पदों की रचना में मातृभूमि की प्रशंसा है, जो संस्कृत में लिखे गए थे। इसके आगे के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का उल्लेख होने लगता है। इसलिए निर्णय लिया गया कि वन्दे मातरम् के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्रगीत के रूप में प्रयुक्त किया जाए। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित जन-गण-मन को राष्ट्रगान का दर्जा मिला। इस प्रकार बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखे गए वन्दे मातरम् के प्रारंभिक दो पदों का गीत राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृत हुआ।
आपत्तियों के बीच राष्ट्रीय गान का निर्धारण: जन-गण-मन और वन्दे मातरम्
राष्ट्रीय गीत के रूप में वन्दे मातरम् का चयन करने के दौरान कुछ विवाद भी उठे। कुछ मुसलमानों को इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के प्रतीक के रूप में देखने पर आपत्ति थी। उन्हें यह भी लगा कि इस गीत का उद्धरण हिन्दूवाद का प्रतीक है। लेकिन इन आपत्तियों के बावजूद, वन्दे मातरम् ने एक ऐतिहासिक और एकता की भावना को प्रतिष्ठान दिया। इस गान की गहरी भावनाओं ने देशवासियों में एकता और गर्व की भावना को जागृत किया और स्वतंत्रता संग्राम के अवसर पर लोगों को प्रेरित किया।
वन्दे मातरम्: राष्ट्रीय गीत बनने की कहानी
वन्दे मातरम् गीत को श्री बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया था और इसे उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में प्रकट किया गया था। यह गीत पहली बार 1876 ईस्वी में प्रकाशित हुआ था। इसे संगीतकार रवींद्रनाथ ठाकुर ने संगीत दिया था। वन्दे मातरम् के बोल और संगीत की मान्यता बढ़ी और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय गर्वपूर्वक गाया जाने लगा। यह गान बड़ी संख्या में लोगों की भावनाओं को प्रतिष्ठित कर गया और आज तक यह भारत का आदर्शित राष्ट्रीय गीत है।
वन्दे मातरम् भारतीय गरिमा, समर्पण और एकता का प्रतीक है। इस गान की भावनाओं ने भारतीय जनता में गर्व और उत्साह की भावना को जगाया है और इसे भारतीय नागरिकों के हृदय में अमर कर दिया है। वन्दे मातरम् हमारे देश की मातृभूमि के प्रति हमारा समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक है, जिसे हम सबको गर्व है और जिसका हम सभी आदर करते हैं।
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