Salima Tete: झारखंड 22 वर्षीय सलीमा टेटे एफआईएच (FIH) प्रो लीग में भारतीय महिला हॉकी टीम की कमान संभालेंगी। सलीमा की ये उपलब्धि सिर्फ उनकी नहीं बल्कि उनक परिवार की भी है, जिन्होंने मिलकर सलीमा को यहां तक पहुंचाया। बेहद गरीब परिवार से संबंध रखने वाली सलीमा ने 2017 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में अपना डेब्यू किया था। जानते हैं क्या सलीमा की असली और प्रेरणादायी कहानी..
सलीमा टेटे के बारे में
भारतीय टीम का कप्तान बनना सलीमा के लिए किसी सपने के सच होने जैसा है। सलीमा झारखंड के सिमडेगा जिले के अंतर्गत आने वाली बड़की छापर की रहने वाली हैं। सलीमा को हॉकी विरासत में मिली है ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा। उनके पिता सुलक्षण स्थानीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी थे और सलीमा की बहन भी हॉकी खेल चुकी हैं।
हॉकी स्टिक नहीं थी तो बांस की खपच्ची से खेली हॉकी
सलीमा का परिवार के पास छोटा सा कच्चा घर था। सलीमा ने अपने गांव से ही हॉकी खेलना शुरू किया। शुरूआती दिनों में उनके पास हॉकी स्टिक भी नहीं थी। लेकिन क्योंकि वो खेलना चाहती थीं तो उन्होंने बांस की खपच्ची से बने स्टिक से खेलना शुरू किया।
परिवार ने सलीमा के लिए किया संघर्ष
सलीमा टेटे (Salima Tete) की यहां तक पहुंचने की कहानी बेहद प्रेरणादायी है। दरअसल सलीमा का परिवार आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है। उनकी मां और बहन ने सलीमा के लिए काफी मेहनत की। सलीमा की मां ने रसोइया का काम किया तो उनकी बहन ने घरों में बर्तन मांजने का काम किया।
बेटी का अंतर्राष्ट्रीय मैच देखने के लिए नहीं था टीवी
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम क्वार्टरफाइनल मुकाबला खेल रही थी। सलीमा भी इस मैच का हिस्सा थीं। लेकिन उनके परिवार के पास टीवी नहीं था। ऐसे में बेटी का मैच देखने के लिए सलीमा के पैतृक घर प्रशासन की मदद से टीवी लगवाया गया।
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Positive सार
सलीमा टेटे (Salima Tete) ने संघर्षों से लड़कर अपनी लड़ाई जीती। भारतीय इंडिया वुमन्स हॉकी टीम की कैप्टन बनने वाली सलीमा हर भारतीय का उम्मीद हैं। उनके खेल से हर युवा प्रेरित हो रहा है।