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8वीं शताब्दी का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर अपने पुराने अस्तित्व की ओर लौट रहा है। भारत के इस 16 सौ साल पुराने विश्वविद्यालय को नया स्वरूप मिलेगा। भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्याय को ‘राष्ट्रीय महत्व के अंतरराष्ट्रीय संस्थान’ के रूप में नामित किया है। 1 सितंबर 2014 को इस विश्वविद्यालय का पहला शैक्षणिक सत्र शुरू हुआ है। हालांकि अभी यह राजगीर में अस्थायी सुविधाओं के साथ चल रहा है। आने वाले समय में 160 हेक्टेयर यानी लगभग 400 एकड़ में इसका निर्माण कार्य आधुनिक होगा। जो विश्व के बड़े यूनिवर्सिटीज को पीछे छोड़ेगा। यह आधुनिक यूनिवर्सिटी होने के साथ ही प्राचीन नालंदा के वैभव को भी स्थापित करेगा।


क्या कहता है इतिहास?

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में की गई थी। पूरे विश्व में प्रसिद्ध इस विश्वविद्याय में देश-विदेश से लोग अध्ययन के लिए आते थे। लेकिन 11वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने यहां आग लगवा थी। कहते हैं इस यूनिवर्सिटी में इतनी किताबें थीं कि 3 महीने तक विश्वविद्यालय की आग धधकती रही।

1600 साल पुराना है ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय, 8वीं से 12 वीं सदी तक रहा शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र।



विश्वविद्यालय के निर्माण में इस बात का ध्यान रखा गया है कि प्राचीन भव्यता समाप्त न हो।


भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्याय को ‘राष्ट्रीय महत्व के अंतरराष्ट्रीय संस्थान’ के रूप में नामित किया है


160 हेक्टेयर यानी लगभग 400 एकड़ में हो रहा है विश्वविद्यालय का निर्माण।


प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के आसपास गुप्तकालीन 52 तालाब स्थित हैं। इतिहासकारों का मानना है कि ये तालाब गुप्तकालीन हैं.



पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने 2007 की ईस्ट एशिया समिट में नालंदा यूनिवर्सिटी के रिवाइवल का विचार 16 देशों के साथ बांटा था। इसके बाद ही इसे अंतरराष्ट्रीय साझेदारी से विकसित करने पर सहमति हुई थी।


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