Hasanamba Temple: भारत में कई प्राचीन और अद्भुत वास्तुकला को दर्शाते मंदिर स्थापित हैं। सभी मंदिरों से कई चमत्कारी और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा ही एक अद्बभुत मंदिर कर्नाटक के हासन में स्थित है जो ‘हासनंबा मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में मां जगदंबा की पूजा होती है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन खुलता है। मंदिर से कई रहस्य और चमत्कार जुड़े हुए हैं। आइए जानते हैं अद्भुत मंदिर से जुड़ी रोचक तथ्यों के बारे में।
सिर्फ दिवाली के दिन खुलता है मंदिर
हासनंबा मंदिर की खासियत है कि मंदिर के पट साल में सिर्फ एक बार दिवाली के दिन खुलता है। दिवाली के दिन से 7 दिनों तक मंदिर दर्शन के लिए खुले रहते हैं। इन सात दिनों को हसनंबा जात्रा महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान दूर-दूर से लोग देवी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। 7 दिनों के बाद मंदिर के पुजारी मंदिर में पूजा करते हैं। देवी को फूल और प्रसाद चढ़ाते हैं और एक दीपक जलाकर पट बंद कर देत हैं। ये पट फिर से आने वाले साल में दिवाली के दिन ही खोला जाता है।
मंदिर से जुड़ा अद्भुत चमत्कार
इस मंदिर से जुड़ा एक अद्भुत रहस्य है। कपटा बंद करते वक्त पुजारी जो फूल, प्रसाद और दिया मां जगदंबा को अर्पित करते हैं वो साल भर बाद भी वैसा ही मिलता है। जी हां हासनंबा मंदिर के पुजारी बताते हैं कि हर साल मंदिर के कपाट खोलने पर साल भर पहले जलाया गया दिया वैसा ही जलता मिलता है। इतना ही नहीं देवी को अर्पित किया फूल बिल्कुल ताजा और चढ़ाया गया प्रसाद भी साफ और ताजा रहता है। इस चमत्कार के पीछे क्या कारण है आज तक कोई नहीं सुलझा सका है।
मंदिर से जुड़ी है ये कथा
एक बार अंधकासुर नाम के राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर आतंक मचाना शुरु किया। तब लोगों ने शिवजी से राक्षस के अंत की गुहार लगाई। लेकिन भगवान शिव जैस ही उसपर प्रहार करते उसके शरीर से निकलने वाले खून से और भी राक्षस उत्पन्न हो जाते थे। तब शिवजी ने राक्षश के अंत के लिए योगेश्वरी देवी को उत्पन्न किया। योगेश्वरी देवी ने अंधकासुर से युद्द कर उसका अंत किया। योगेश्वरी देवी के साथ 7 देवियां प्रकट हुई थीं, जिन्हें सप्तमातृका कहा जाता है। उनमें से वैष्णवी, महेश्वरी और कौमारी देवी ने चींटियों की बाम्बी में रहना पसंद किया। यही वो तीन पिंडिया हैं जो हसनंबा मंदिर में जगदंबा के रूप में पूजी जात हैं। वहीं सप्तमातृका में से चामुंडी, वाराही और इंद्राणी पास ने एक कुंड में निवास किया और ब्राह्मी केंच्चम्मना होसकोटे को अपने स्थान के लिए चुना।