Stand Against Naxals: गृह मंत्री अमित शाह के आगामी दौरे से पहले नक्सलियों ने सशर्त शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया था, जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने ठुकरा दिया है। राज्य के उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार संवाद के लिए तैयार है, लेकिन नक्सली हिंसा के बारे में कोई समझौता नहीं होगा। यह स्थिति सरकार की नीति के स्पष्ट संकेत देती है कि वार्ता केवल भारतीय संविधान के दायरे में ही संभव होगी।
नक्सली संघर्ष और सरकार की प्रतिक्रिया
छत्तीसगढ़ में पिछले 15 महीनों में 380 से ज्यादा नक्सली मारे गए और 1116 नक्सलियों ने समर्पण किया है। सुरक्षा बलों द्वारा की गई मुठभेड़ों और दबाव के कारण नक्सली संगठन कमजोर हुआ है। नक्सलियों के द्वारा शांति वार्ता का प्रस्ताव आने के बाद, उप मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर वे मुख्य धारा में लौटना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी शर्तों और प्रतिनिधियों को स्पष्ट रूप से सार्वजनिक करना होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह वार्ता किसी कट्टरपंथी विचारधारा की तर्ज पर नहीं हो सकती।
नक्सलियों की शांति वार्ता की शर्तें
नक्सलियों ने शांति वार्ता की शर्तें रखी हैं जिसमें सरकार के ऑपरेशनों को रोकने और नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई को बंद करने की मांग की गई है। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया है। विजय शर्मा ने कहा कि नक्सली अगर शांति वार्ता चाहते हैं, तो उन्हें भारतीय संविधान को स्वीकार करना होगा। सरकार नक्सल हिंसा के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी।
सरकार की विकास योजनाएं
पिछले कुछ वर्षों में बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार ने विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ‘डबल इंजन सरकार’ की योजनाओं के तहत, गांवों में सड़क, बिजली, पानी, स्कूल और अन्य बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया गया है, जिससे नक्सलियों का जनाधार कमजोर हुआ है। इसके साथ ही, सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को मजबूत किया है और नए सुरक्षा चौकी भी स्थापित किए हैं।
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नक्सलवाद पर लगातार बढ़ता दबाव
अमित शाह के 4 और 5 अप्रैल के दौरे से पहले नक्सली संगठन की स्थिति पहले से कमजोर हो चुकी है। उनके ऊपर सरकार और सुरक्षा बलों का दबाव बढ़ चुका है, जिससे उन्हें शांति वार्ता का प्रस्ताव देना पड़ा। हालांकि, छत्तीसगढ़ सरकार का स्पष्ट संदेश यह है कि नक्सलवाद के खिलाफ सरकार का अभियान लगातार जारी रहेगा।