ईश्वर का गणित

श्वर ने सृष्टि की रचना की है। और सारे नियम भी उसने ही बनाए हैं। उनके बनाए नियमों में कोई भेदभाव नहीं है। एक छोटे से जीव से लेकर मनुष्य तक सभी के लिए भगवान ने कुछ न कुछ तय किया है। उनका गणित कभी किसी के लिए ज्यादा या कम नहीं होता है। इस संसार में आया प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों के हिसाब से ही अच्छा और बुरा सब कुछ पाता है। इस बात के सार को आप इस छोटी सी कहानी से समझ सकते हैं-

एक शाम दो आदमी मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे और मौसम का मज़ा ले रहे थे।

थोड़ी देर में वहां एक और आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर बाते करने लगा।

कुछ देर बाद उन सब को भुख लगने लगी। तब पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।

उसके बाद वह सोचने लगे कि 8 रोटी तीन लोगों में कैसे बांटी जा सकती है?

इतनें में पहले आदमी ने कहा कि ऐसा करते हैं, कि हर रोटी के 3 टुकड़े कर लेते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 – 8 टुकड़े बराबर-बराबर बंट जाएंगे। और सबका पेट बराबरी से भर भी जाएगा।

सबको उसकी राय ठीक लगी और 8 रोटी के 24 टुकड़े करके प्रत्येक ने 8-8 रोटी के टुकड़े खाकर अपनी भूख को शांत किया।

इतने में वहां बारिश होने लगी।

जिस कारण से तीनों मंदिर के प्रांगण में ही सो गए।

सुबह उठने के बाद तीसरे आदमी ने दोनों को उनके उपकार के लिए धन्यवाद दिया।

जाते समय वह दोनों को प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले उपहार स्वरूप सोने की 8 गिन्नी देकर अपने घर के लिए निकल गया।

उसके जाने के बाद गिन्नी को किस तरह से बांटा जाए उस पर दोनों चर्चा करने लगे।

 इतने में दूसरे आदमी ने पहले आदमी से कहा हम दोनों आपस में 4-4 गिन्नी को बांट लेते हैं।

पहला आदमी इस बात से इंकार करते हुए बोला की मेरी तीन रोटी थी और तुम्हारी पांच रोटी थी, इसलिए मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी चाहिए।
इस बात पर दोनों में बहस होने लगी।

 इसके बाद वे दोनों इस मसले को सुलझाने के लिए मंदिर के पुजारी के पास गए।

दोनों ने अपनी समस्या पंडित जी को बताई तथा समाधान के लिए प्रार्थना की ।

पुजारी उनकी बातें सुन कर असमंजस में पड़ गए।

 दोनों ही आदमी दूसरे को ज्यादा देने के लिये लड़ रहे थे।

पुजारी ने समय मांगते हुए कहा-“इन गिन्नियों को तुम मेरे पास छोड़ जाओ, मुझे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए, कल सुबह तक मैं जवाब दे पाऊंगा” ।

वैसे तो पुजारी के दिल में दूसरे आदमी की बात ठीक लग रही थी। पर वह इस बात से निश्चित नहीं थे।

 इस बारे में गहराई से सोंचते हुए पुजारी की आंख लग गयी।

 कुछ देर बाद उनके सपने में भगवान प्रकट हुए।

पुजारी ने भगवान को सारी बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की।

पुजारी ने अपनी राय देते हुए कहा कि मेरे ख्याल से 3-5 का बंटवारा ही उचित लगता है।

भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं, पहले आदमी को एक गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को सात गिन्नी मिलनी चाहिए।

भगवान की बात सुनकर पुजारी आश्चर्यचकित हो गये उन्होंने पूछा- प्रभु, ऐसा कैसे ?

भगवान फिर एक बार मुस्कुराए और बोले- इसमें कोई अंदेशा नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 टुकड़े में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े उसने खुद खाए। 

उसका त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था। इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है।

दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए। इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है।

 यह ही मेरा गणित है और यह ही मेरा न्याय है!

ईश्वर के न्याय की यह बात सुनकर पुजारी नतमस्तक हो गए।

किसी भी स्थिति को देखने व समझने का तरीका हमारा व ईश्वर का एकदम अलग होता हैं। हम ईश्वर के न्याय के तरीके को कभी नहीं समझ सकते हैं। हम हमेशा अपने त्याग का गुणगान करते रहते हैं, परन्तु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य से कर हमेशा सही निर्णय करते हैं।

इसी तरह कई बार आपको भी ईश्वर के गणित का सामना करना पड़ा होगा। शेयर करे see positive के साथ आपके साथ हुए ईश्वर के गणित की कहानी।
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Dr. Kirti Sisodhia

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