उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर बसा है बुंदेलखंड। भारत में सबसे ज्यादा सूखे क्षेत्र के रूप में इसकी पहचान है। बुंदेलखंड के इस इलाके के किसान दूसरे इलाके में खेती ठीक से नहीं हो पाती है यही वजह है कि यहां के किसान मजदूरी दूसरे शहरों का रूख करते हैं। बुंदेलखंड में स्थिति कई बार ऐसी हुई है कि यहां ट्रेन से पानी पहुंचाया गया है। लेकिन इसी इलाके के एक किसान हैं जो कम पानी में ऑर्गेनिक खेती कर सूखाग्रस्त इलाकों के किसानों के लिए मिसाल बन रहे हैं। जानते हैं कैसे बुंदेलखंड के प्रेम सिंह बदल रहे हैं लोगों की जिंदगी….
बुंदेलखंड के बांदा में किसानों ने ना सिर्फ जलवायु संकट का निडरता से सामना किया है, बल्कि खेती में अपने खुशहाल जीवन की भी तलाश कर रहे हैं। ऐसे ही किसानों में से एक हैं प्रेम सिंह। जिनकी मेहनत से बंजर जमीन पर भी फसल लहलहा रहे हैं। उन्होंने बुंदेलखंड की इस बंजर धरती को Organic Farming के जरिए खुशहाल बनाने का सपना पूरा किया।
प्रेम सिंह के बारे में…
साल 1987 में प्रेम सिंह ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई खत्म होने के बाद वे अपने गांव वापस आ गए। प्रेम सिंह इस बात से परेशान थे कि वे नौकरी करें या फिर खेती। खेती के लिए उनके क्षेत्र में संसाधन नहीं थे और वे नौकरी कर गुलामी नहीं करना चाहते थे। यही वजह थी कि उन्होंने खेती में नवाचार को अपनाने के बारे में सोचा। बांदा के बड़ोखर खुर्द गांव के रहने वाले प्रेम सिंह ने आवर्तनसील खेती का चुनाव किया।
काफी रिसर्च के बाद शुरू की खेती…
प्रेम सिंह ने देखा कि उस समय लोग खेती कर साल में 2 से ढाई लाख रुपए कमाते थे। जिसमें से ₹30,000 ट्रैक्टर के मेंटेनेंस और डीजल पर खर्च करना होता था। वहीं 32,000 हर साल बीज, डीएपी-यूरिया और कीटनाशक पर खर्च किया जाता था। पूरे साल में प्रेम सिंह सिर्फ 40,000 रुपए ही बचा पाते थे। इसी रकम में अगले साल की खेती के साथ घर के खर्च के लिए भी पैसे बचाने की बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी।
प्रेम सिंह पर चार भाइयों और माता-पिता की भी जिम्मेदारी थी, जिस वजह से उनके पास पैसे नहीं बचते थे। यही नहीं हर साल कर्ज का बोझ और बढ़ता जाता। इसके बाद उन्होंने यह सोचा कि बिना कीटनाशक और बिना खाद की खेती Organic Farming को करना उनके लिए एक बेहतर रास्ता हो सकता है। इसके बाद प्रेम सिंह ने खाद और कीटनाशक के विकल्पों पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने खेती के साथ पशुपालन, कंपोस्ट खाद और खेती के कई नवाचारों को अपनाया। कई मुश्किलों के बावजूद आज वे ऑर्गेनिक खेती को कर रहे हैं और दूसरे लोगों के लिए मिसाल भी बन रहे हैं।