India’s 1st ‘Gatewoman’: मिलिए मिर्जा से, निभाती हैं रेलवे में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी!

India’s 1st ‘Gatewoman’ ‘Mirza Salma Beg’: लखनऊ रेलवे स्टेशन से कुछ दूर पहले ही मल्हौर रेलवे क्रॉसिंग है। यहां से जब आप गुजरेंगे तो हिजाब वाली एक लड़की हरा और लाल झंडा पकड़े ट्रेन को सिग्नल देते हुए दिखाई देगी। ट्रेन आने से पहले वो बड़े ही सक्रियता से क्रॉसिंग बंद करती हैं और ट्रेन के जाने के बाद क्रॉसिंग खोलती है। पहली बार इस लड़की को देखकर हर कोई हैरान होता है। बात ये नहीं है कि ये काम महिलाएं नहीं कर सकती हैं बल्कि ये है, कि आपने कभी भी रेलवे क्रासिंग पर किसी Gatewoman को नहीं देखा होगा। तो हम आपको बता रहे हैं कि ऐसा नहीं है, भारत को साल 1013 में ही अपनी पहली Gatewoman’ ‘Mirza Salma Beg मिल चुकी हैं। जानते हैं India’s 1st ‘Gatewoman’ ‘Mirza Salma Beg’ के बारे में, कैसे हुई उनकी शुरूआत और क्या है उनकी रियल स्टोरी….

भारत की पहली गेटवुमन ‘मिर्जा सलमा बेग’

Mirza Salma Beg लखनऊ की रहने वाली हैं। उन्होंने लखनऊ के निकट मल्हौर में गेटमैन के पद की जिम्मेदारी संभाली है। सलमा मल्हौर रेलवे क्रॉसिंग में ट्रेन के आने से पहले पटरियों पर पैदल यात्रियों की आवाजाही रोकने के लिए गेट बंद करती हैं और ट्रेन गुजर जाने के बाद उसे बड़े ही सावधानी से खोलती हैं। वो ट्रेन आने पर ट्रैक सेट करती हैं।

कैसे बनीं देश की पहली गेटवुमन?

मिर्जा सलमा बेग के पिता गेटमैन थे। साल 2010 की बात है जब वे काफी बीमार हो गए। उनकी सेहत बिगड़ी और उन्हें पैरालिसिस का अटैक पड़ गया। ऐसे में घर चलाने के लिए किसी को तो आगे आना था। मिर्जा सलमा बेग ने फैसला किया कि वो अपने पिता की जिम्मेदारी निभाएंगी। इसके बाद उन्होंने रेलवे से मदद मांगी। उनकी अर्जी पर विचार करने के बाद रेलवे ने उन्हें पिता की जगह काम करने की इजाजत दे दी। इस तरह सलमा सिर्फ 20 साल की उम्र में देश की पहली गेटवुमन बनीं।

गेटवुमन होना जिम्मेदारी का काम

सलमा सुबह से ही काम पर पहुंच जाती हैं। सुबह 8 बजे तक भरवारा क्रॉसिंग पहुंचने के बाद, वे ड्यूटी बुक में अपना चार्ज रात वाले गेटमैन से लिखित में लेती हैं। फिर सलमा रेलगाड़ियों और मालगाड़ियों को पास कराने और क्रॉसिंग खोलने का काम करती हैं। उनकी ड्यूटी रात 8 बजे तक होती है।

आसान नहीं रहा सफर

एक वेबसाइट को दिए अपने साक्षात्कार में सलमा कहती हैं कि इस नौकरी को करते हुए शुरू में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। उन्हें पानी पीने और वॉशरूम जाने के लिए क्रॉसिंग से दो किमी. दूर मल्हौर स्टेशन तक जाना होता था। इसके साथ ही शुरू-शुरू में साथी गेटमैन तंज भी कसते थे। इसके अलावा गेटमैन होना काफी ज्यादा शारीरिक परिश्रम वाला काम था। जब सलमा ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं, तो वहां सिर्फ पुरुष कर्मचारी ही हुआ करते थे। उन्हें शुरू-शुरू में काफी असहज महसूस होता था। क्रॉसिंग बंद करने और खोलने का काम एक भारी भरकम चरखी के जरिए होता है, ये बड़ी मेहनत का काम है। लेकिन सलमा ने हर स्थिति परिस्थिति से लड़ाई लड़ी और अपना मुकाम हासिल किया। 

सलमा कहती हैं कि उनका सफर काफी अलग-अलग स्थितियों से होकर गुजरा। शुरू-शुरू में भले ही वो अपनी इस नौकरी के लिए असहज थी और यह बहुत स्वाभाविक था क्योंकि उनसे पहले कभी किसी महिला ने ये काम नहीं किया था। पर समय के साथ सबकुछ ठीक होता चला गया। मल्हौर स्टेशन के सभी उच्च अधिकारी भी उनके काम से हमेशा खुश रहते हैं। बीते कई सालों में सलमा ने सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का अवॉर्ड भी जीता है।

Positive सार

1st ‘Gatewoman’ ‘Mirza Salma Beg’ सलमा की कहानी का सार सिर्फ इतना है कि आप कुछ भी कर सकते हैं। फिर आप महिला हों पुरुष हों या फिर दिव्यांग। समय हमेशा आपके अनुकूल नहीं होंगी। रास्ते टेढ़े-मेढ़े हो सकते हैं जैसे सलमा के थे। लेकिन सलमा के पास हौसला था जिसकी वजह से उन्होंने परेशानियों की जगह हमेशा संभावनाओं को देखा और आज वो India’s 1st ‘Gatewoman’ ‘Mirza Salma Beg’ कहलाती हैं। आप हमें जरूर बताएं कि आपको India’s 1st ‘Gatewoman’ ‘Mirza Salma Beg’ की कहानी कैसी लगी। आप हमसे सोशल मीडिया के जरिए भी जुड़कर अपना अनुभव शेयर कर सकते हैं।

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Rishita Diwan

Content Writer

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