

कौन हैं ‘आशा दीदी’, जिनके सम्मान में झुक गए WHO और प्रधानमंत्री मोदी
आशा कार्यकर्ता, जैसा नाम, ठीक वैसा ही काम। करीब डेढ़ अरब की आबादी वाले देश भारत को स्वस्थ रखने में बड़ी भूमिका निभाने वाली, स्वास्थ्य व्यवस्था की इस छोटी सी इकाई की तारीफ विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य संगठन ने की है। गांव में कभी लोगों को बीमारियों के प्रति जागरूक करती, कभी गर्भवती को अस्पताल लेकर जाती, कभी बच्चों के टीकाकरण में सहायता करती आशा वर्कर्स, ‘आशा दीदी’ बन चुकी हैं। ये गांव की प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता होती हैं और भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अधीन होती हैं। 18 महीने इनकी ट्रेनिंग गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं देने और जागरूक करने के लिए होती है। कोरोना महामारी के दौर में आपने शायद पहली बार इनका नाम सुना हो लेकिन ये अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाती हैं। हम इनकी बात क्यों कर रहे हैं, इसकी वजह ख़ुश करने वाली है।
WHO ने आशा कार्यकर्ताओं को किया सम्मानित
कोरोना महामारी के दौर में जब दुनिया एक-दूसरे के पास आने से डर रही थी, तब दिल्ली की बैठकों के निर्देश लाखों आशा कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर पूरा कर रही थीं। उनके इस जज़्बे को सिर-आंखों पर बिठाया विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने। डब्लयूएचओ ने 10 लाख आशा कार्यकर्ताओं को ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया है। कोरोना महामारी के ख़िलाफ आशा कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उन्हें इस सम्मान से नवाज़ा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभकामना देते हुए ट्वीट किया कि आशा कार्यकर्ता एक स्वस्थ भारत सुनिश्चित करने में सबसे आगे हैं। इससे उन्होंने ये संदेश भी दिया कि भविष्य के स्वास्थ्य अभियानों में आशा कार्यकर्ताओं की चेन बड़ी भूमिका निभाने वाली है।
कोरोना महामारी में थामे रखी स्वास्थ्य सेवाओं की डोर
दरअसल, कोरोना महामारी के वक्त आशा कार्यकर्ताओं ने फ्रंट लाइन वर्कर्स की तरह काम किया। इस दौरान ही सबसे ज़्यादा इनका नाम सुना गया। घर-घर कोरोना संक्रमितों का पता लगाती, प्राथमिक उपचार देती, लोगों को जागरूक करती और टीकाकरण के दौरान भी अपने लक्ष्य में पीछे न हटती आशा कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने नहीं दी। वे अंधेरे में रोशनी की तरह अपने हिस्से का बड़ा काम करती रहीं। उस वक्त जब दुनिया को नहीं पता था कि किस तरह इस बीमारी से बचाव हो, आशा वर्कर्स हर गाइडलाइन्स का पालन करते हुए गांव-गांव स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाती रहीं।
डब्ल्यूएचओ ने जमकर की आशा कार्यकर्ताओं की तारीफ
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने छ पुरस्कारों की घोषणा करते हुए आशा कार्यकर्ताओं की तारीफ की। WHO ने कहा कि आशा का मतलब हिन्दी में ‘उम्मीद’ होता है। कोरोना महामारी के दौरान मातृत्व सेवा और बच्चों के वैक्सीनेशन में अहम भूमिका निभाई है। भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य सुरक्षा को बेहतर करने में, उच्च रक्तचाप और टीबी के इलाज के साथ-साथ पोषण और साफ-सफाई में भी आशा वर्कर्स का काम एक क़दम आगे है। संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने कहा कि जब दुनिया असमानता, महामारी, जलवायु संकट और खाद्य सुरक्षा से जूझ रही है, ऐसे में ये पुरस्कार उन लोगों के लिए है, जिन्होंने दुनियाभर में हेल्थ के प्रति बेहतरीन काम किया है।
आने वाले कल के लिए तैयार हैं आशा कार्यकर्ता
आशा दीदियां स्वास्थ्य कार्यकर्ता की तरह काम करती हैं। 25 से 45 वर्ष तक की आशा कार्यकर्ता पंचायत के प्रति जवाबदेह होती हैं और आंगनवाड़ी के ज़रिए काम करती हैं। हर गांव में एक हज़ार लोगों पर एक आशा कार्यकर्ता का प्रावधान है। आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में भी आशा वर्कर्स तैनात होती हैं, जो पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपना काम पूरा करती हैं। खराब मौसम, उफनती नदी, तेज धूप की परवाह किए बिना इनका एक ही लक्ष्य होता है स्वस्थ भारत। केंद्र सरकार स्वस्थ भारत का सपना देख रही है। जिसे साकार करने में आशा कार्यकर्ता बड़ी भूमिका निभा रही हैं। इस तरह वे देश के कोने-कोने को हेल्दी रखने में बड़ा योगदान देने वाली हैं।