

• शिक्षा मंत्रालय एनईपी (NEP) की सिफारिशों के तहत Dyslexia से पीड़ित बच्चों के लिए पहल
• डिस्लेक्सिया के बारे में स्कूल, कॉलेज से लेकर दफ्तरों तक विशेष जागरूकता अभियान शुरू
• शिक्षकों को दी जाएगी ट्रेनिंग
बोलने, लिखने या पढ़ने में दिक्कत वाले डिस्लेक्सिया छात्रों को अब तीन घंटे की परीक्षा में एक घंटे का ज्यादा समय दिया जाएगा। जरूरत पड़ने पर ऐसे छात्रों को लिखित परीक्षा में सहायक भी उपलब्ध होंगे। नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत केंद्र सरकार इन छात्रों के लिए यह विशेष प्रावधान करने वाली है।
एनईपी ने की थी सिफारिश
शिक्षा मंत्रालय एनईपी की सिफारिशों के तहत डिस्लेक्सिया के बारे में स्कूल, कॉलेज से लेकर दफ्तरों तक विशेष जागरूकता अभियान शुरू कर रही है, इसमें शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा कि कैसे, छात्रों की पहचान और पढ़ाई में दिक्कत दूर करने को विशेष माड्यूल के तहत कार्य किया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय और कौशल विकास मंत्रालय आम छात्रों की तरह डिस्लेक्सिया पीड़ित छात्रों के लिए पढ़ाई का बेहतर माहौल को तैयार करने का कार्य कर रही है।
इसमें डिस्लेक्सिया पर काम करने वाली संस्था चेंज आईएनकेके भी सरकार के साथ काम करेगी। इस संस्था ने एआईसीटीई के साथ-साथ राज्य शिक्षा विभाग एससीईआरटी के साथ मिलकर खास प्रोजेक्ट पर काम किया है। जिसके तहत 10वीं, 12वीं, राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा से लेकर अन्य परीक्षाओं में डिस्लेक्सिया वाले उम्मीदवार तीन घंटे की परीक्षा में एक घंटे अतिरिक्त समय की जरूरत होने पर समय की मांग कर सकते हैं।
कौशल से जुड़ेंगे डिस्लेक्सिया के छात्र
डिस्लेक्सिया छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ कौशल विकास से भी जोड़ने का कार्य सरकार कर रही है, ताकि वे आत्मनिर्भर हों। दरअसल, ऐसे छात्र इनोवेशन के साथ दूसरों से सोचने और समझने में थोड़े अलग होते हैं। इसलिए अगर इन छात्रों को कौशल विकास के साथ जोड़ दिया जाए, तो उसका लाभ उन्हें मिलेगा। साथ ही वे आगे चलकर स्टार्टअप आदि में भी अपना भविष्य बना सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, हर पांच में से एक छात्र या व्यक्ति डिस्लेक्सिया प्रभावित है, लेकिन पहचान न होने के कारण उन्हें कभी इस बात का पता ही नहीं लग पाता है कि और वे खुद को दूसरों से थोड़ा कम समझने लगते हैं।
डिस्लेक्सिया के बारे में
डिस्लेक्सिया की स्थिति उसे कहते हैं जब सीखने-समझने में कठिनाई होने लगे। जिसकी वजह से पढ़ने में दिक्कत, लिखने और वर्तनी की समस्याओं को समझने में होती है। बच्चे सीधे अक्षर को उल्टा लिखने लगते हैं। ऐसे बच्चों को बोलने, भाषा, पढ़ने, स्पेलिंग, गणित, शब्द या अंक की सही तरह से पहचान करने में थोड़ी सी परेशानी झेलनी पड़ती है। हालांकि, डिस्लेक्सिया को बीमारी नहीं कह सकते हैं, बल्कि यह छात्र सिर्फ कुछ मामलों में ही कम या पीछे होते हैं। जबकि इनोवेशन, आइडिया, दिक्कतों के समाधान में दूसरों बच्चों से काफी आगे होते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने की पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल के बाद पहली बार डिस्लेक्सिया से पीड़ित छात्रों के लिए विशेष काम किया जा रहा है। इस जागरूकता अभियान का लाभ स्कूल और कॉलेज में ऐसे छात्रों के साथ ऑफिस में काम करने वाले युवाओं को भी होगा। डिस्लेक्सिया वाले छात्र या लोग काफी ज्यादा आईक्यू वाले होते हैं, सिर्फ सोचने का नजरिया इनका थोड़ा अलग होता है। इसलिए ऐसे छात्रों को पढ़ाने के लिए विशेष माड्यूल तैयार हुआ है।