पवित्र ग्रंथ भगवद गीता में योग को बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से परिभाषित किया गया है; “योग स्वयं की यात्रा है, स्वयं के माध्यम से, स्वयं की ओर”। योग केवल एक शारीरिक कार्य नहीं बल्कि एक जीवंत परंपरा है। योग एक प्रकार का विज्ञान है। योग हमारे शरीर, मन, भावना एवं ऊर्जा के स्तर पर काम करता है। इसकी वजह से योग को चार भागों में बांटा गया है : कर्मयोग, जहां हम अपने शरीर का उपयोग करते हैं; भक्तियोग, जहां हम अपनी भावनाओं का उपयोग करते हैं; ज्ञानयोग, जहां हम मन एवं बुद्धि का प्रयोग करते हैं और क्रियायोग, जहां हम अपनी ऊर्जा का उपयोग करते हैं।और यह चारों योग एक ही आसान यानी सूर्य नमस्कार में समाहित हैं।
सूर्य नमस्कार एक ऐसा अभ्यास है जिसका प्रारम्भ अति प्राचीन काल से उस समय हुआ जब मनुष्य सबसे पहले अपने अंदर स्थित आध्यात्मिक शक्ति के प्रति सजग हुआ था। यह सजगता ही योग की आधारशिला है। योग की दृष्टि से सूर्य नमस्कार के अभ्यास से मानव प्रकृति का सार पक्ष जागृत होता है। सर्वोच्च चेतना का विकास करने हेतु जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य नमस्कार की विभिन्न स्थितियों में चक्रों का उद्दीपन होता है और हर आसान के साथ यदि सूर्य मंत्र का उच्चारण किया जाए तो वह और प्रभावशाली होता है।
सूर्य नमस्कार के आसान इस प्रकार है:
- प्रणामासन -अनाहत चक्र – ॐ मित्राय नमः
- हस्त उत्तानासन – विशुद्धि चक्र – ॐ रवये नमः
- पादहस्तासन – स्वाधिष्ठान चक्र – ॐ सूर्याय नमः
- अश्व संचालनासन – आज्ञा चक्र – ॐ भानवे नमः
- पर्वतासन – विशुद्धि चक्र – ॐ खगाय नमः
- अष्टांग नमस्कार – मणिपुर चक्र – ॐ पूष्णे नमः
- भुजंगासन- स्वाधिष्ठान चक्र – ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
- पर्वतासन – विशुद्धि चक्र – ॐ मरीचये नमः
- अश्व संचालनासन – आज्ञा चक्र – ॐ आदित्याय नमः
- पादहस्तासन – स्वाधिष्ठान चक्र – ॐ सवित्रे नमः
- हस्त उत्तानासन – विशुद्धि चक्र – ॐ अर्काय नमः
- प्रणामासन -अनाहत चक्र – ॐ भास्कराय नमः
सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से होने वाले लाभ सामान्य शारीरिक व्यायामों की तुलना में बहुत अधिक है। इसका कारण है कि इस से शरीर की ऊर्जा पर सीधा शक्ति प्रदायक प्रभाव पड़ता है। यह सौर ऊर्जा मणिपुर चक्र में केंद्रित रहती है तथा पिंगला नाड़ी से प्रवाहित होती है। इसे यौगिक साधना के साथ सम्मिलित करते हुए अथवा प्राणायाम के साथ सूर्य नमस्कार का अभ्यास किया जाता है तो शारीरिक तथा मानसिक दोनों स्तरों पर ऊर्जा संतुलित होती है।
योग शास्त्रों के अनुसार एक आधारभूत ऊर्जा-संरचना हमारे शरीर को जीवन प्रदान करती है प्राचीन ग्रंथों के अनुसार पूरे मानव शरीर में ७२००० नाड़ियाँ या ऊर्जा – प्रवाह पथ है। विभिन्न स्तरों पर ये प्रवाह परस्पर संबद्ध है तथा एक – दूसरे पर प्रभाव डालते है। मणिपुर चक्र नाभि में स्थित है जिसे शरीर का गुरुत्व केंद्र कहा जा सकता है। यह सौर -जालक से जुड़ा हुआ है।
योगासनों पर शोध-कार्य करने वाली एकेडमी ऑफ़ फिजिकल एजुकेशन, वारसा के शरीर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर विजला रोमा –नोस्की का विचार है- “गतिशीलता तथा अनुक्रम हमारे ब्रह्माण्ड की एक विशेषता है।“ जब हम सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास करते हैं तो हमारे जीवन में कुछ नये तत्वों का समावेश हो जाता है यथा कर्मबद्ध शक्ति संचारक , शरीर को शुद्ध करने वाले आसनों का समूह, श्वसन मंत्र तथा चक्र – उद्दीपन।
यह रोज सुबह जल पान से पूर्व कोई टॉनिक लेने की तरह ही है। मानो हम प्रतिदिन प्राण के कुछ कणो का इंजेक्शन ले रहे है। चयापचय, स्नायविक कार्यप्रणाली , अन्तः स्त्रावी हारमोन का स्त्राव , दैनिक कार्यकलाप सभी अपने सामान्य स्वाभाविक स्थिति में क्रियाशील रहते है परन्तु ऐसे नवीन घटकका समावेश हो जाता है जिससे महीनों तथा वर्षों में शरीर के अनुकर्मों में सूक्ष्म परिवर्तन आ जाता है। यह जिस प्रकार आहार में थोड़ा-सा नमक मिला देने से उसका स्वाद बदल जाता है उसी तरह सूर्य नमस्कार का प्रभाव कुछ-कुछ इसी तरह का होता है।
अनुसंधानकर्ता टी पासेक तथा डब्ल्यू रोमानोव्स्की के अनुसार मनोव्याधि – निरोधक विधियों जिसमे सूर्य नमस्कार के आसान भी सम्मिलित है, का उद्देश्य शिथिलन तथा व्यावहारिक स्थितियों का ऐसा व्यवस्थित क्रम उपस्थित करता है जिनके लक्षण किसी जैविक अनुक्रम के लक्षणों के समान हैं। उनके अनुसार यह अनुक्रम एक ‘नियंत्रित अनुक्रम’ है और जो आतंरिक अनुक्रम से भिन्न है। इस विधि के अनुसार आतंरिक सामंजस्य की स्थिति में उसी प्रकार वांछित परिवर्तन लाना संभव है जिस प्रकार रेडियो का सेलेक्टर मिलती हुई आवृत्तियों में परिवर्तन कर देता है।
सूर्य नमस्कार के चिकित्सीय पक्ष की चर्चा करेंगे कि किस प्रकार यह रोगों का प्रतिरोध करता है, शारीरिक क्रियाओं को व्यवस्थित रखता है, शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को बनाए रखता है तथा मानसिक संतुलन कायम रखता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार कि भूमिका उससे कहीं अधिक है, जितना सामान्यता समझा जाता है।
योग के दृष्टिकोण से अस्वस्थ होने का कारण है – शरीर के ऊर्जा संस्थानों में असंतुलन। कोई व्यक्ति कितना ही बुद्धिमान या व्यवस्था-प्रिय हो, यदि उसके ऊर्जा संस्थान सामान्य ढंग से क्रियाशील नहीं हैं तो उसे व्याधिग्रस्त होना ही है। बहुधा अनेक बीमारियाँ बिना किसी पूर्वाभास के प्रकट हो जाती हैं परन्तु ऐसी व्याधियां वर्षों से शरीर की अनुवांशिक संरचना में सुप्तावस्था में अथवा मन के गहरे तथा अवचेतन भाग में छिपी रहती हैं। अतः व्याधिमुक्त होने के लिए यह बात महत्वहीन है कि व्याधि का बाह्मा कारण क्या है? मुख्य बात यह है कि मन और शरीर के प्रभावित अंगों को नियंत्रित करने वाले तथा स्वस्थ विकास के लिए उत्तरदायी ऊर्जा संस्थानों में पुर्नसंतुलन स्थापित किया जाए। सूर्य नमस्कार और योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाकर, अपनी ऊर्जाओं में संतुलन लाकर जीवन को संतुलित किया जा सकता है। योग हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।