Parenting Tips: पैरेंट्स की आदतें बच्चों पर कैसे डालती हैं प्रभाव?

Parenting Tips: आज के समय में बच्चों की परवरिश करना माता-पिता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। तकनीक के बढ़ते प्रभाव, बदलते सामाजिक मूल्यों और बच्चों की नई-नई ज़रूरतों ने पैरेंटिंग को पहले से कहीं अधिक जटिल बना दिया है। जहाँ एक तरफ़ माता-पिता बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई बार अनजाने में वे कुछ ऐसी गलतियाँ भी कर बैठते हैं जो बच्चों के व्यक्तित्व विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। इस विषय पर मनोचिकित्सकों और विशेषज्ञों की राय बेहद महत्वपूर्ण है।

पहले खुद अपनाएँ हेल्दी आदतें

मनोचिकित्सकों का मानना है कि बच्चों को सिर्फ़ बातें समझाने से बात नहीं बनती। पैरेंट्स को चाहिए कि वे जो आदतें बच्चों में देखना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले स्वयं अपनाएँ। उदाहरण के तौर पर, अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल कम करे, तो पहले आपको खुद इस नियम का पालन करना होगा। बच्चे जो देखते हैं, वही सीखते हैं। अगर पैरेंट्स खुद मोबाइल या टीवी के सामने घंटों बिताते हैं, तो बच्चे भला कैसे उनसे अलग व्यवहार करेंगे?

पैरैंट्स का भी बेहतर आचरण जरूरी

बच्चों से ‘क्या नहीं करना है’ कहने से बेहतर है कि पैरेंट्स अपने आचरण से उन्हें ‘क्या करना है’ यह सिखाएँ। बच्चों के सामने मोबाइल को साइड में रखकर उनके साथ समय बिताना, खेल खेलना, और बातचीत करना, उनके विकास और भावनात्मक जुड़ाव के लिए कहीं अधिक लाभकारी होता है।

हेलीकॉप्टर पैरेंटिंग

बदलते समय में एक और बड़ी चुनौती है हेलीकॉप्टर पैरेंटिंग। यानी हर समय बच्चों के हर क्रियाकलाप पर नजर रखना, उन्हें हर कदम पर गाइड करना और उनके निर्णयों को अपने अनुसार बदलना। यह पैरेंटिंग शैली बच्चों के मानसिक विकास और आत्मनिर्भरता पर गहरा असर डाल सकती है। जब बच्चों को हर चीज़ के लिए पैरेंट्स पर निर्भर रहना पड़ता है, तो उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं हो पाता।

गलती करना भी जरूरी

बच्चों को गलतियाँ करने दीजिए। वे अपनी गलतियों से सीखेंगे और अपने अनुभवों से आगे बढ़ेंगे। हर समय उन पर नजर रखना और उन्हें हर परिस्थिति में सुरक्षित रखने की कोशिश करना उनके आत्मविश्वास और आत्म-निर्भरता को कम करता है। हेलीकॉप्टर पैरेंटिंग के बजाय बच्चों को कुछ हद तक स्वतंत्रता देना और उनके निर्णयों का सम्मान करना आवश्यक है, ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

बच्चों के साथ हेल्दी बातचीत जरूरी

आज की जीवनशैली में माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। व्यस्त दिनचर्या, ऑफिस के तनाव और बच्चों की पढ़ाई का दबाव, इन सब के बीच पैरेंट्स और बच्चों के पास एक-दूसरे के लिए समय ही नहीं रह जाता। इस कारण अक्सर बच्चे अपने विचारों, परेशानियों और इच्छाओं को व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे उनमें अकेलापन, अवसाद और असुरक्षा की भावना विकसित हो सकती है।

बच्चों के साथ बिताएं समय

इस समस्या का समाधान केवल बातचीत में है। रोज़ाना कम से कम एक बार बच्चों से उनकी दिनचर्या, उनके दोस्तों, और उनकी परेशानियों के बारे में पूछना ज़रूरी है। ऐसा करने से बच्चे यह महसूस करते हैं कि उनके माता-पिता न सिर्फ़ उनसे प्यार करते हैं बल्कि उनकी बातें सुनने और समझने के लिए भी तत्पर हैं। स्वस्थ संवाद बच्चों में आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है।

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नियम बनाएँ साथ ही उन्हें समझाएँ भी

बच्चों की परवरिश में अनुशासन का भी अपना महत्व है। लेकिन यह अनुशासन किसी बंदिश की तरह नहीं होना चाहिए। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे जो नियम बच्चों के लिए बना रहे हैं, उनका उद्देश्य और उनकी आवश्यकता बच्चों को समझाई जाए। उदाहरण के तौर पर, अगर आप चाहते हैं कि बच्चा रात 9 बजे से पहले सो जाए, तो यह न कहें कि “यह मेरा नियम है और तुम्हें मानना पड़ेगा।” बल्कि, उन्हें समझाएँ कि पर्याप्त नींद उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए क्यों ज़रूरी है। जब बच्चे इन नियमों के पीछे की वजह समझेंगे, तो वे खुद-ब-खुद उनका पालन करेंगे।

परवरिश में धैर्य और समझदारी की ज़रूरत

माता-पिता की भूमिका बच्चों के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होती है। इसलिए बच्चों के साथ हर कदम पर संवाद करना, उनकी भावनाओं को समझना और अपनी आदतों से उन्हें सही राह दिखाना ज़रूरी है। मनोचिकित्सक का मानना है कि पैरेंट्स को हेलीकॉप्टर पैरेंटिंग से बचते हुए बच्चों को स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों देना चाहिए। इससे न सिर्फ़ बच्चे आत्मनिर्भर बनेंगे बल्कि उनमें आत्म-विश्वास और सकारात्मकता भी विकसित होगी।

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Rishita Diwan

Content Writer

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