बिहार के पश्चिम चंपारण में उपजने वाले मर्चा धान (Marcha Rice) को केंद्र सरकार ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दे दिया है। इस खास उपज को जीआई टैग मिलने से किसानों को मर्चा धान की पहले से बेहतर कीमत तो मिलेगी साथ ही ये धान पश्चिम चंपारण को एक नई पहचान दिलाएगी।
मर्चा धान (Marcha Rice) की खासियत
मर्चा धान अपनी कई खसियतों की वजह से जाना जाता है। दूसरे धान उत्पादों से अलग आकृति रखने वाला मर्चा धान काली मिर्च की तरह होता है। यही वजह है कि इसे मिर्चा या मर्चा धान कहा जाता है। इस धान की गंध काफी खास होती है। धान से निकलने वाले चावल के दाने और गुच्छे में से आने वाली एक खास सुगंध इसे दूसरे धान से अलग बनाती है।
जीआई टैग पाने वाला छठवां उत्पाद
मर्चा धान बिहार की ऐसी छठवीं उपज है जिसे जीआई टैग मिला है। इससे पहले मुजफ्फरपुर की लीची, भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी चावल, मिथिला के मखाना को भी GI Tag मिला है। केंद्र सरकार के जीआई रजिस्ट्रार, चेन्नई की ओर से जारी प्रमाण पत्र के माध्यम से मर्चा धान को जीआई प्रमाण दिया गया।
कैसे पड़ा मर्चा धान नाम
मर्चा धान बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थानीय रूप से पाए जाने वाले चावल की एक किस्म के तौर पर पहचान रखता है। यह काली मिर्च की तरह ही दिखाई देता है। यही वजह है कि इसे मिर्चा या मर्चा धान के नाम से पहचान मिली है। इस धान को स्थानीय स्तर पर मिर्चा, मचया, मारीची जैसे नामों से भी जाना जाता है। मर्चा धान के पौधे, अनाज और गुच्छे में एक अनूठी सुगंध पाई जाती है, जो इसे काफी अलग उत्पाद के रूप में स्थापित करती है। पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया, मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर एवं लौरिया इस चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में शामिल हैं।
ऐसे मिलता है GI Tag
भारत में वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से जीआई टैग (GI Tag) दिया जाता है। भारत में यह टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स को दिया जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दे दिया जाता। भारत में वर्ष 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स’ लागू किया था। इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है।
कैसे पाया जाता है जीआई टैग?
जीआई टैग (GI Tag) के लिए सबसे पहले चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में आवेदन करना होता है। इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जाते हैं। एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक यह यह टैग मान्य होता है। जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना होता है। देश में पहला जीआई टैग (GI Tag) साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को दिया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर WIPO की तरफ से जीआई टैग (GI Tag) जारी होता है। इन टैग वाली वस्तुओं पर कोई और देश अपना दावा नहीं कर सकता है। जिस भी वस्तु को जीआई टैग (GI Tag) मिल जाता है, उसे कोई भी दूसरा व्यक्ति उसी नाम के तहत उसी से मिलती-जुलती वस्तु नहीं बेंच सकता है।