Digital dementia: आज के समय में हर किसी के हाथ में स्मार्ट फोन होता है। एक क्लिक में दुनिया की सारी जानकारी और मनपंसद मनोरंजन को हम मोबाइल के रूप में अपने जेब में रखते हैं। किसी भी टेक्नोलॉजी का अविष्कार जीवन को सरल बनाने के लिए किया जाता है। लेकिन किसी भी सुविधा का गलत उपयोग नुकसान पहुंचाने वाला ही होता है। ऐसी ही स्मार्ट फोन पर जरूरत से ज्यादा समय बिताने वाले लोग ‘डिजिटल डिमेंशिया’ का शिकार हो रहे हैं। जानते हैं क्या है डिजिटल डिमेंशिया और हम इससे कैसे सुरक्षित रह सकत हैं।
क्या है ‘डिजिटल डाइमेंशिया’
‘डिजिटल डिमेंशिया’ एक तरह की कमजोर मानसिक स्थिति है। हमारा दिमाग इस हालत में तब पहुंचता है जब हम फोन पर जरूरत से ज्यादा समय बिताते हैं। लगातार स्मार्ट फोन यूज करने से हमारी आंखों के सामने बहुत कम समय में बहुत सारी इमेज, एप, गेम और वीडियो आते हैं। जब तक दिमाग किसी एक चीज पर कॉन्संट्रेट कर पाए इससे पहले ही स्क्रिन पर दूसरी चीज दिखाई देने लगती है। ऐसा होने पर दिमाग की काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है। इसी स्थिति को अब एक्सपर्ट ‘डिजिटल डिमेंशिया’ नाम दे रहे हैं।
लक्षण जानना है जरूरी
डिजिटल डिमेंशिया के लक्षणों को जानना बेहद जरूरी है। लक्षणों की पहचान होने पर ही इससे बचाव के कदम उठाए जा सकते हैं। ‘डिजिटल डिमेंशिया’ के शिकार होने पर इस तरह की परेशानी सामने आती है-
- चीजों को याद रखने में परेशानी का होना
- एकाग्र ना हो पाना
- सामान्य बातों को समझने में समय लगना
- छोटे फैसले लेने में भी कंफ्यूज रहना
- ब्रेन फॉगिंग
- नींद का पूरा ना होना
हर उम्र पर हो सकता है असर
डिजिटल डिमेंशिया का शिकार किसी भी उम्र का व्यक्ति हो सकता है। लेकिन 20 साल से लेकर 40 साल तक के एज ग्रुप में यह शिकायत ज्यादा देखने को मिलती है। क्योंकी यही वह उम्र होती है जब लोग फोन का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। 10 साल से छोटे बच्चे के दिमाग पर किसी भी चीज का जल्दी असर होता है। ऐसे में अगर छोटे बच्चे लगातार फोन का उपयोग करते हैं तो उनके दिमाम पर इसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है।
डिजिटल डिमेंशिया से कैसे बचें?
डिजिटल डिमेंशिया से बचने के लिए ना सिर्फ अपने स्क्रिन टाइम को कम करना होगा बल्की कुछ शारीरिक और मानसिक व्यायाम भी करने होंगे। इन टिप्स की मदद से आप खुद को डिजिटल डिमेंशिया से बचा सकते हैं-
स्क्रिन टाइम करें फिक्स
डिजिटल डिमेंशिया से खुद को बचाने के लिए सबसे पहले हमें अपना स्क्रिन टाइम फिक्स करना होगा। साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि हम फोन पर किस तरह का कंटेंट देख रहे हैं या गेम खेल रहे हैं। कुछ गेम दिमाग पर गलत असर डालते हैं इसका प्रभाव हमारे व्यवहार में भी नजर आने लगता है।
व्यायाम करें
योगा या व्यायाम हर तरह से फायदेमंद होता है। इससे ना सिर्फ हमारा शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहता है बल्की हमारा दिमाग भी रिलैक्स फील करता है। व्यायाम से ब्लड में ऑक्सिजन की सही मात्रा पहुंचती है जो हमें मानिसक रूप से स्वस्थ्य रखने के लिए जरूरी है।
मेडिटेशन
डिजिटल डिमेंशिया का संबंध सीधे तौर पर हमारे दिमाग से है। ऐसे में अगर हमें डिजिटल डिमेंशिया के कोई भी लक्षण दिखाई दें तो हमें मेडिटेशन जरूर करना चाहिए। मेडिटेशन भूलने की आदत, एकाग्रता की कमी जैसी कई प्रॉब्लम्स को हल करता है।
अच्छी डाइट लें
अच्छी डाइट, स्वस्थ शरीर और स्वस्थ दिमाग दोनो के लिए जरूरी होता है। ऐसे में मानसिक क्षमता को बढ़ाने के लिए हमें अच्छा और पोषक तत्वों से भरा आहार लेना जरूरी है। शरीर में किसी भी तरह के विटामिन, प्रोटिन या मिनरल्स की कमी नहीं होनी चाहिए।
अच्छी नींद लें
स्वस्थ दिमाग के लिए अच्छी नींद का होना बेहद जरूरी है। हमारा दिमाग पूरे समय एक्टिव रहता है। यह हर वक्त हमारे किए गए काम, सुनी गई बातों और देखी गई पिक्चर्स को स्टोर करने का काम करता रहा है। ऐसे में दिमाग को भी आराम की जरूरत होती है। अच्छी नींद से ही हमार दिमाग रिलैक्ट करता है और फिर आगे अच्छी तरह से काम करने के लिए रिचार्ज होता है। इसलिए पूरी और अच्छी नींद बेहद जरूरी है।
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Positive सार
टेक्नोलॉजी हमारी सुविधा के लिए होती है लेकिन किसी भी चीज की अति हमेशा गलत परिणाम देती है। मोबाइल फोन और इंटरनेट ने हमारा जीवन काफी आसान बना दिया है। इसका उपयोग उतना ही करना सहीं है जितना किया जाना चाहिए। हमें कोशिश करनी चाहिए कि काम के अलावा हम फोन का कम से कम उपयोग करें। स्क्रिन टाइम कम करने से मानसिक स्वास्थ के साथ ही हमें अपने निजी जीवन में भी सकारात्मक बदलाव नजर आएंगे।