यह खूबसूरत तस्वीर कर्नाटक के मंडलपट्टी में खिले एक दुर्लभ
फूल के हैं। 12 सालों में एक बार खिलने वाले इन फूलों का नाम नीलकुरिंजी है। यह
पौधा सामान्यत: एशिया और ऑस्ट्रेलिया में पाया
जाता है। कुछ दिनों पहले यह फूल कर्नाटक जिले के मंडलापट्टी हिल्स पर नजर आए हैं। दुनियाभर में अपनी खूबसूरती और दुर्लभ गुणों के लिए प्रसद्ध इन फूलों को
केरल में कुरुंजी कहा जाता है। नीलकुरिंजी एक मोनोकार्पिक पौधा है। यानी के एक बार
फूल आने के बाद इसका पौध खत्म हो जाता है। और नए बीजों के दोबारा पनपने के लिए
लंबे वक्त का इंतजार करना होता है।
पौराणिक कहानियों में हुआ है जिक्र
नीलकुरिंजी के फूलों का पौराणिक महत्व भी है। कर्नाटक, केरण
और तमिलनाडु के शोला जंगलों के ऊंचे पहाड़ों पर ही यह फूल खिलते हैं। स्थानीय
जनजाती के मान्यता है कि भगवान मरुगा ने जनजाती की शिकारी लड़की वेली से
नीलकुरिंजी फूलों की माला पहनाकर विवाह किया था। इसके अलावा पश्चिमी घाट की पलियान
जनजाति के लोग अपनी उम्र का हिसाब इन फूलों के खिलने से लगाते हैं। साथ ही ऐसा भी माना
जाता है कि केरल के लोग इसे समृद्धि का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए यहां इनके
खिलने का इंतजार लोगा बेसब्री से करते हैं। नीलकुरिंजी के नाम की उत्पत्ति कुंठी
नदी से हुई है ।
क्यों खास है ‘नीलकुरिंजी’ के फूल ?
नीलकुरिंजी के फूलों से निकलने वाला शहद 15
साल तक खराब नहीं होते है। यह फूल जीनस स्ट्रोबिलेंथेस से
जुड़ा है। इनकी लगभग 450 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें से 46 भारत में मिलती
हैं और लगभग 43 प्रजातियां केरल में पाई जाती हैं। ज्यादातर फूलों का रंग नीला
होता है। यह अलग-अलग समय पर खिलते हैं। जबकि कुछ फूल 5 साल,
12 साल के अंतर में खिलते हैं और कुछ किस्मों को खिलने में
14 साल लग जाते हैं। नीलकुरिंजी के फूलों
को केरल और तमिलनाडू में पहली बार 2006 में देखा गया था।