Mahua:महुए का पेड़ क्यों कहलाता है आदिवासियों का “कल्पवृक्ष” ?

Mahua: आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ की समृद्ध और प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है। आदिवासियों का खान-पान, रीति-रिवाज, पहनावा आम लोगों से कुछ अलग, लेकिन एक अर्थ लिए होता है। जैसे आदिवासियों के लिए जंगल, उनकी परंपरा और उनके देवता काफी महत्व रखते हैं। उसी तरह महुए के पेड़ भी उनके लिए बेहद खास होते हैं। महुए के पेड़ को आदिवासियों का ‘कल्प वृक्ष’ कहा जाता है।

महुआ को क्यों कहते हैं कल्पवृक्ष?

महुआ आदिवासियों के लिए आय का साधन, औषधी, दवा और देवता भी है। इसलिए महुए का पेड़ आदिवासियों का कल्पवृक्ष कहलाता है। महुआ जिसे ज्यादातर लोग सिर्फ शराब बनाने के लिए जानते हैं। पर महुआ कई औषधीय गुणों से भरा होता है। आदिवासी अपनी कई बीमारियों का इलाज महुआ पेड़ की छाल, उसकी पत्तियों और तेल से ही कर लेते हैं।

आदिवासियों के लिए है आय का जरिया

आदिवासी समुदाय के लिए महुए का पेड़ आय का साधन भी है। बसंत के जाते ही और गर्मियों की शुरुआती दौर में महुए का फूल गिरने लगता है। इस समय आदिवासी कम्यूनिटी के बच्चे से लेकर बड़े तक सुबह से जंगल निकल जाते हैं। वो से भी जंगल से महुआ का फूल और फल चुनकर लाते हैं।  महुए का फल और फूल दोनों ही वन उपज है। तीन महीने महुए का सीजन होता है इस वक्त लाखों के महुए के बिक्री होती है।

देवतुल्य है महुआ का पेड़

आदिवासी समाज के लिए महुए का पेड़ देवता के समान है। पेड़ को पूजने लिए एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को ‘इंडुम पंडुम’ कहते हैं। इसका मतलब होता है ‘महुआ का त्योहार’। इस त्योहार में पूरा आदिवासी सामाज इकट्ठा होता है और महुए के पेड़ की पूजा करता है। इस दौरान पेड़ के चारों तरफ लोक नृत्य भी किया जाता है। इस त्योहार को छत्तीसगढ का गोंड, धुरवा, हलबा, दोरली समुदाय मनाते हैं। इस त्योहार के जरिए वो महुआ के पेड़ से विनती करते है कि वो इस मौसम ढेर सारे फल दें। क्योंकी कई आदिवासी परिवार आर्थिक रूप से महुआ के पेड़ पर निर्भर रहते हैं।

औषधी भी है महुआ

आदिवासी लोग महुए को औषधी के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। महुआ प्रोटीन, कार्बोहाइडेट्स और फाइबर जैसे गुणों से भरपूर रहता है। जल जाने पर आदिवासी इसकी पत्तियों पीस कर जले हुए स्थान पर लगाते हैं। इसके अलावा शुगर, दांत के दर्द, गाठिया रोग और पाइल्स जैसी बीमारियों में भी उपयोगी माना जाता है।

सरकार कर रही मदद

महुए का जितना उत्पादन जंगलों में होता है उतना फायदा आदिवासियों को नहीं मिल पाता। बाजार से पहले बिचौलिए कम दाम में महुए खरीद लेते हैं। इसके लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। राज्य के कई जिलों में महुआ प्रसंस्करण केंद्र चलाए जा रहे हैं। जहां महुए से जैम, जैली, महुआ कोल्ड ड्रिंग, बिस्किट और कुकीज जैसे प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं। महुए से जुड़े उत्पाद को सी-मार्ट और संजीवनी स्टोर जैसे आउटलेट में बेचा जा  रहा है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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