Mental Health Helpline: आज की पढ़ाई और प्रतियोगिता की दौड़ में छात्र सबसे ज्यादा मानसिक दबाव झेल रहे हैं। एग्ज़ाम, करियर, पेरेंट्स की उम्मीदें और सोशल मीडिया की तुलना ये सब मिलकर स्टूडेंट्स को मानसिक रूप से थका देते हैं। ऐसे में अगर वक्त रहते बात न की जाए, तो चिंता और डिप्रेशन जैसे हालात बन सकते हैं। कई बार छात्र इतने टूट जाते हैं कि वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। लेकिन अच्छी बात ये है कि सरकार अब इस दिशा में एक्टिव हो गई है और छात्रों के लिए कई हेल्पलाइन और प्रोग्राम शुरू किए गए हैं।
केंद्र सरकार की बड़ी पहल
छात्रों की मेंटल हेल्थ को मजबूत बनाने के लिए केंद्र सरकार ने कई जरूरी स्टेप्स लिए हैं। कुछ प्रमुख योजनाएं और हेल्पलाइन मदद कर सकती है,
- किरण हेल्पलाइन- टोल-फ्री नंबर 1800-599-0019 पर किसी भी समय बात की जा सकती है।
- मनोदर्पण पहल- शिक्षा मंत्रालय द्वारा छात्रों की मानसिक स्थिति पर फोकस करने के लिए चलाई जा रही है।
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति- सुसाइड जैसे गंभीर कदम को रोकने के लिए बनाई गई एक नीति।
- मानस मित्र ऐप- मोबाइल पर उपलब्ध यह ऐप काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े टूल्स उपलब्ध कराता है।
- राष्ट्रीय टेली मानस हेल्थ प्रोग्राम- टोल-फ्री नंबर 14416 पर फ्री में प्रोफेशनल काउंसलिंग मिलती है।
- CBSE की काउंसलिंग सेवा- एग्ज़ाम टाइम में खासतौर पर 1800-11-8004 पर स्टूडेंट्स और पेरेंट्स के लिए काउंसलिंग सुविधा।
- NCERT का प्रयास- स्कूली बच्चों के लिए स्पेशल गाइडलाइन और मेंटल हेल्थ सपोर्ट सिस्टम।
राज्य सरकारें भी पीछे नहीं
- केवल केंद्र ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारें भी एक्टिव हो चुकी हैं। जैसे,
- राजस्थान- टोल-फ्री हेल्पलाइन और मानसिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
- कोटा मॉडल- डीएम के साथ डिनर इनिशिएटिव जहां स्टूडेंट्स प्रशासनिक अफसरों से खुलकर बात कर सकते हैं।
- कर्नाटक- इ-मानस हेल्पलाइन की शुरुआत, जिससे युवा ऑनलाइन काउंसलिंग ले सकते हैं।
- दिल्ली- ‘दिल्ली केयर्स’ नाम की स्कीम के तहत टेलीफोनिक काउंसलिंग सेवा दी जा रही है।
बातचीत से निकलता है हल
कई स्टूडेंट्स आज भी सोचते हैं कि मेंटल हेल्थ पर बात करना शर्म की बात है। जबकि सच्चाई ये है कि जितना जल्दी आप बात करेंगे, उतनी ही जल्दी हल मिलेगा। हेल्पलाइन, ऐप, काउंसलिंग—ये सब एक दोस्त की तरह आपके साथ खड़े हैं। जो छात्र अपनी परेशानियां शेयर करते हैं, वो ही असल में मजबूत होते हैं।
पैरेंट्स और टीचर्स की जिम्मेदारी
बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना सिर्फ सरकार की नहीं, पैरेंट्स और टीचर्स की भी जिम्मेदारी है। उनके बिहेवियर, नींद, खाने की आदतों और सोशल एक्टिविटी में बदलाव अगर नज़र आए, तो फौरन उनसे बात करें और ज़रूरत हो तो प्रोफेशनल हेल्प लें।
ये भी पढ़ें CBSE: साल में 2 बार बोर्ड होने से छात्रों के मेंटल हेल्थ पर पड़ेगा असर?
कोई परेशानी बड़ी नहीं
सरकारी स्कीम्स और हेल्पलाइन न सिर्फ छात्रों को एक नई राह दिखा रही हैं, बल्कि समाज में मेंटल हेल्थ को लेकर एक नया नजरिया भी ला रही हैं। अगर आप या आपके आसपास कोई छात्र परेशानी में है, तो इन उपायों का इस्तेमाल करें क्योंकि हर जीवन कीमती है।