नौ दिनों के उल्लास और आराधना के बाद विजयादशमी पर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे श्री राम के लंका विजय के साथ हम सब ने अपने रावण रूपी अवगुणों पर विजय हासिल कर ली हो।
वैसे भी दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने का उत्सव है। नवरात्रि में माँ दुर्गा की आराधना के बाद विजय के लिए प्रस्थान करने का उत्सव यानी दशहरे का अपना ही महत्व है।
भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता और शौर्य की समर्थक रही है।
प्रत्येक व्यक्ति और समाज में वीरता का प्रादुर्भाव हो, यही दशहरे के उत्सव की आधारशिला है।
अपने अंदर साहस, सच्चाई का आह्वान करने और अवगुणों का नाश करने की क्षमता विकसित हो यही विजयादशमी का संदेश है।
इस पर्व को भगवती के “विजया” नाम पर “विजयादशमी” भी कहते हैं। इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। इस लिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहते हैं।
आज हम सभी के अपने-अपने रावण है। वैसे तो श्री राम भी हम सभी के लिये अपने तरीके से ही हैं।
कौशल्या के राम, लक्ष्मण के राम से अलग हैं, भरत के राम, लक्ष्मण के राम से भिन्न हैं। और माता सीता के राम तो शब्दों की अभिव्यक्ति से परे है।
हम सब अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार श्री राम का अनुसरण करते हैं, उनके जीवन के सूत्रों के कुछ अंश जीवन में उतारते हैं।
श्री राम सा ठहराव, धैर्य, साहस और कर्तव्य परायणता आम मनुष्य में होना संभव ही नहीं हैं।
शास्त्रों में इस दिन को विजय का प्रस्थान माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है, उसमें निश्चित ही विजयी हासिल होती है। तो संकल्प लें कि हम सभी अपने अवगुणों पर विजय का शंखनाद करें और
विजयादशमी के पर्व को दिल से मनाएं।
शुभ विजयादशमी !