भारत का संविधान एक ऐसा जीवन्त लिखित दस्तावेज है, जिससे शासन प्रणाली संचालित होती है। इसकी सुनभ्यता और सौम्यता इसके संशोधनो में अन्तनिर्हित है। भारतीय संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान माना जाता है। भारतीय संविधान में वर्तमान समय में 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ हैं और इन्हें 25 भागों में विभाजित किया गया है।
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबंधी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिये एक “कैबिनेट मिशन” भारत भेजा, जिसमे 3 मंत्री थे। 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद हो जाने के बाद “संविधान सभा” की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसंबर 1947 से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गये थे। इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन बहस की। संविधान सभा में कुल 12 अधिवेशन किये। तथा अंतिम दिन 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किये और संविधान बनने में 166 दिन बैठक की गई इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी। भारत के संविधान में सभी 389 सदस्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 26 नवंबर 1949 को संविधान को पारित कर 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया।
वैसे तो संविधान में देश से संबंधित सारे नियम लिखित हैं, साथ ही हर भारतीय को कुछ मौलिक अधिकार भी दिये गये हैं। वे मौलिक अधिकार न्याय योग्य है तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते हैं।
ये मौलिक अधिकार है –
1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
4. शोषण के विरुद्ध अधिकार
5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
रोजमर्रा की जिंदगी में हमें इन मौलिक अधिकारों की महत्ता का अंदाजा नहीं होता, क्योंकि ये हमें हमारे जन्म के साथ ही मिल जाते हैं। लेकिन जब आप अन्य देश चीन, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, अफगानिस्तान जैसे देशों के नागरिक अधिकारों से तुलना करे तब पता चलता है कि ये मौलिक अधिकार हर व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप से बनाये गये हैं। लेकिन इन अधिकारों के इस्तेमाल के साथ इनकी गरिमा बनाये रखना भी हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
आजकल कई जगहों पर इन मौलिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया जाता है, जो कि दंडनीय अपराध है। आप अपने विचारो को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र हैं, लेकिन कोई भी अधिकार देश और देश के प्रधानमंत्री से बड़ा नही है ना ही देश व संवैधानिक सर्वोच्च पद की गरिमा को खंडित करने का अधिकार है। ये एक नैतिक जिम्मेदारी है, हमें अपने विवेक से काम लेते हुये इन मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल हमारे खुद के विकास के लिये करना चाहिये, ना कि किसी के निजी या राजनैतिक पार्टी के एजेंडे को सहयोग देने के लिये।
आज 73वें गणतंत्र दिवस पर हर भारतीय ये शपथ ले कि हम हमारे संविधान और उसमें लिखी हर बात की गरिमा को बनाये रखेंगे।
– गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ।