झलकारी बाई: कहानी उस वीरांगना की जिनके शौर्य में थी रानी लक्ष्मीबाई जैसी चमक!
मध्यप्रदेश का झांसी अपनी कीर्ति का बखान खुद ही करता है।जिसकी वजह हैं, वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, वह वीरांगना जिन्होंने वीरता की एक मिसाल कायम की है।
मध्यप्रदेश का झांसी अपनी कीर्ति का बखान खुद ही करता है।जिसकी वजह हैं, वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, वह वीरांगना जिन्होंने वीरता की एक मिसाल कायम की है।
भारत का हर व्यक्ति यह जानता है कि उन्होंने 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। और अपने प्राणों की आहूति दे दी। लेकिन ऐसी ही एक क्रांतिकारी रानी वेलु नचियार थीं जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अंग्रेजों को भारत की नारी शक्ति का अहसास करा दिया था।
मातंगिनी हाजरा आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाली सेनानी थी, जिन्होंने गांधीजी के नक्शे कदम पर चलकर देश की आजादी में अपना अमूल्य योगदान दिया।
1857 की क्रांति को कोई भी भारतीय भूल नहीं सकता, अंग्रेजों के खिलाफ भारत की इस पहली लड़ाई ने अंग्रेजी सत्ता की नींव को हिला कर रख दिया। इस युद्ध में सभी ने देश की आजादी के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। फिर चाहे वो पुरूष हो या महिलाएं।
आज भारतीय सिनेमा का बाजार दुनियाभर के सबसे महंगे सिनेमा व्यवसायों में से एक है। और ये देन है दादा साहब फालके की... जो भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाते हैं। उन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी और 1913 में राजा हरिशचंद्र नाम की एक फिल्म बनाई। इस फिल्म को भारत की पहली फिल्म होने का गौरव मिला है।
प्रेम बिहारी नारायण की कहानी संविधान की पांडुलिपि से जुड़ी है। संविधान की पांडुलिपि यानि कि वह मूल किताब जिसे हाथ से लिखा गया है।
इतिहास में कई अनदेखे और अनसुलझे रहस्य हैं, जो इंसानों की जिंदगी में गहरी छाप छोड़ने की क्षमता रखते हैं। ऐसी ही एक प्रभावशाली ऐतिहासिक कहानी है जिसका असर आज भी देखा जा सकता है। ये कहानी है एक अनोखी रानी की, जिन्होंने स्त्री गरीमा और राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण की आहुति दे दी। 18वीं शताब्दी की यह कहानी काफी दिलचस्प है यह गाथा है गिन्नौरगढ़ की आखिरी गोंड रानी 'रानी कमलापति' की।
कारगिल युद्ध के बारे में तो सभी लोग जानते हैं, पर शेरिंग अंग्मो शुनु के बारे में शायद ही कोई जानता होगा। कारगिल के जवानों जितनी ही बहादुर हैं शेरिंग अंग्मो शुनु, जिन्होंने करगिल युद्ध के दौरान भारी गोलीबारी के बीच रेडियो के प्रसारण को जारी रखा था। इस युद्ध में सेना के साथ ऑल इंडिया रेडियो ने बहुत महत्त्वपूर्ण किरदार निभाया था।
'चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान', इस प्रमुख काव्य की रचना कवि चंदबरदाई ने की हैं।
प्रसिद्ध रंगर्कमी जिनका जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ, लेकिन उन्होने भारत का नाम विदेशों में भी रौशन किया। वह इकलौते भारतीय थे जो रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट लंदन केलिए चयनित हुए ।