प्रेमा माथुर: भारत की पहली महिला कमर्शियल पायलट जिन्हें महिला होने की वजह से नहीं दी गई नौकरी!
साल 1947 में सिर्फ देश की गुलामी खत्म नहीं हुई थी बल्कि भारतीय महिलाओं के लिए असामनता और भेदभाव की कुरीति भी खत्म हुई।
साल 1947 में सिर्फ देश की गुलामी खत्म नहीं हुई थी बल्कि भारतीय महिलाओं के लिए असामनता और भेदभाव की कुरीति भी खत्म हुई।
भारत की एक बेहतरीन फोटोग्राफर, जिन्होंने कई सालों तक छिपाई अपनी पहचान, इतिहास के पन्नों में दर्ज है नाम
Kanaklata Barua: भारत में सत्य घटनाओं पर आधारित आजादी के कई किस्से और कहानियां प्रचलित हैं। ये किस्से और कहानियां भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक भी हैं।
महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता की लड़ाई शुरू की, तब महिला से लेकर पुरुष, बड़े से लेकर युवा और बच्चे सभी उनके साथ स्वतंत्रता के जन आंदोलन में शामिल हो गए।
भारतीय इतिहास इस बात का गवाह है, कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जितनी भूमिका पुरुष वीरों की रही, उतनी ही महिलाओं की भी भागीदारी रही है। ऐसी ही वीर महिलाओं में से एक थीं रानी ताराबाई।
Bhikaiji Cama: मैडम भीखाजी कामा वह महिला थीं, जिन्होंने देश प्रेम की परिभाषा को एक अलग ही रूप में प्रदर्शित किया।
इतिहास में जब भी 1857 की क्रांति (Revolution of 1857) में लड़ने वाली महिलाओं का नाम आता है तो अक्सर, रानी लक्ष्मीबाई, बेग़म हजरत महल जैसी वीरांगनाओं को याद किया जाता है।
पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में एक रेलवे स्टेशन है, ‘बेला नगर रेलवे स्टेशन’। 1958 में इस स्टेशन का नाम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी ‘बेला मित्रा’ के नाम पर रखा गया। ये वही साहसी महिला हैं जिन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ वह आंदोलन था, जिसके बाद भारतीयों ने अंग्रेजों को भारत की ज़मीं से उखाड़ फेंका। और इसी आंदोलन में नायिका बनकर उभरीं अरुणा आस़फ अली।
मध्यप्रदेश का झांसी अपनी कीर्ति का बखान खुद ही करता है।जिसकी वजह हैं, वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, वह वीरांगना जिन्होंने वीरता की एक मिसाल कायम की है।