बांसुरी, भारतीय संगीत की प्रमुख वाद्य तंत्र है, और उसके निर्माण में परंपरागत तकनीकों का विशेष महत्व है। इस लेख में, हम देखेंगे कि पीलीभीत कैसे असम से आता है और यहां से बांसुरी की निर्माण प्रक्रिया कैसे होती है।
पीलीभीत: बांसुरी नगरी
पीलीभीत एक जाना-माना नाम है बांसुरी निर्माण के लिए, जहां विशेष तरीके से बांसुरी तैयार की जाती है। यहां के कारीगर बांसुरी की विशेषता और क्षमताओं को समझते हैं और उसके अनुसार अपनी कला को अपनाते हैं।
असम से पीलीभीत तक: बांस का उत्पादन
पीलीभीत बारेली मंडल का सबसे जंगली इलाका है, लेकिन यहां बांस नहीं उगता। बांस का विशेष उत्पादन असम के सिल्चर शहर में होता है, जहां यह पहले उगता है और फिर पीलीभीत पहुंचता है। इस विशेष बांस का उपयोग बांसुरी बनाने के लिए होता है।
बांसुरी निर्माण: प्रक्रिया
- बांस की तैयारी पहला चरण है। इसमें सबसे पहले, बांस के बड़े टुकड़े बांसुरी के आकार के अनुसार काटे जाते हैं।
- छीलाई के लिए बांस के इन टुकड़ों को छीलने के बाद, बांस की सामग्री तैयार की जाती है।
- बांसुरी को छेदना एक महत्वपूर्ण कार्य है। सुर भरने के लिए, सलाखों से गर्म किए गए बांस को छेदा जाता है।
- सजावट बांसुरी को आकर्षक बनात है। इसके लिए बांसुरी के ऊपरी हिस्से में डॉट या अन्य सजावट लगाई जाती है, जिससे उसकी खूबसूरती बढ़ती है।
- अंतिम धोरण के लिए बांसुरी को धोकर सजाया जाता है और तैयार किया जाता है।
मूल्य और उपयोग
बांसुरी की कीमत 20 रुपए से लेकर 15,000 रुपए तक की होती है, और इसके लिए विशेष ऑर्डर पर भी बढ़ी होती है। यह बांसुरी दुनिया भर में संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है और उसकी विशेषता इसे विशेष बनाती है।
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Positive सार
पीलीभीत की बांसुरी के निर्माण में एक खास प्रक्रिया और उसके महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है। इसे विश्व भर में संगीतीय धारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जो भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।