NASA RESEARCH: आज विज्ञान ने कई खोज कर लिए हैं। मंगल पर जीवन से लेकर गैलेक्सी के रहस्यों को भी खोज निकाला है। साथ ही वैज्ञानिक अक्सर अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज में लगे रहते हैं। हाल ही में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने एक ऐसे ग्रह की खोज की है, जिसका द्रव्यमान धरती से 4 गुना ज्यादा बड़ा है। यह ग्रह हमारी आकाशगंगा के बाहरी इलाके में स्थित है। इसका नाम वैज्ञानिकों ने ‘रॉस 508 बीरखा है। हालांकि इसे ‘सुपर अर्थ’ के रूप में माना जा रहा है।
पृथ्वी से 37 प्रकाश वर्ष दूर हैं ‘सुपर अर्थ’
हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित ग्रहों को एक्सोप्लैनेट के नाम से जाना जाता है। और यही वजह है कि रॉस 508 बी भी एक एक्सोप्लैनेट ही है। यह पृथ्वी से 37 प्रकाश वर्ष की दूरी पर मौजूद है। नासा के अनुसार, यह एक ऐसे तारे के चक्कर लगाता है, जिसका द्रव्यमान सूर्य का 5वां हिस्सा है।
रेड ड्वार्फ इस तारे का नाम है। यह हमारे सूर्य के मुकाबले काफी ज्यादा सुर्ख लाल रंग, ठंडा और मंद प्रकाश वाले गुणों का है। सुपर अर्थ 50 लाख किलोमीटर की दूरी से इसके चक्कर काटता है। वहीं, अगर हम हमारे सौरमंडल की बात करें तो पहला ग्रह बुध भी सूरज से 6 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इस एक्सोप्लैनेट पर जीवन संभव हो सकता है।
‘सुपर अर्थ’ पर 11 दिन का है एक साल
हालांकि रॉस 508 बी और रेड ड्वार्फ के बीच की दूरी काफी कम है, इसलिए एक्सोप्लैनेट को तारे की परिक्रमा करने में सिर्फ 10.8 दिन का ही समय लगता है। यानी, कि यहां पर एक साल 11 दिन के बराबर ही है। वहीं हमारी पृथ्वी पर एक साल 365 दिन के बराबर होता है।
सुबारू टेलिस्कोप से की गई है ‘सुपर अर्थ’ खोज
रॉस 508 बी जापान के सुबारू स्ट्रैटेजिक प्रोग्राम की पहल पर खोजा गया पहला एक्सोप्लैनेट है। इसे सुबारू टेलिस्कोप की मदद से खोजा गया है। इसकी तकनीक को जापान के एस्ट्रोबायोलॉजी सेंटर ने डेवलप किया है।
एक्सोप्लैनेट पर संभव है जीवन
नासा के अनुसार रॉस 508 बी की सतह धरती से भी ज्यादा चट्टानी हो सकती है। अंडाकार कक्षा (ऑर्बिट) वाला यह एक्सोप्लैनेट हर वक्त तारे से एक समान दूरी पर नहीं होता। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तरह का ग्रह अपनी सतह पर पानी को बना कर रखने में सफल रहता है। हालांकि यहां पानी या जीवन वास्तव में है या नहीं, इस पर अभी और रिसर्च की जरूरत है।