राजस्थान न केवल एक राज्य के नाम से जाना जाता है बल्कि वीरता की कई कहानीयों से भी पहचाना जाता है। कभी गुलामी स्वीकार नहीं करने वाले महाराणा प्रताप की इस धरा पर वीरता और शौर्य की कई कहानियां आज भी जिन्दा हैं। यहाँ के वीर पुत्रों का नाम इतिहास में शामिल है जिनका ज़िक्र बड़े ही अदब से लिया जाता है इतना ही नहीं यहाँ कई वीरांगनाएं ऐसे भी थी , जिनकी मिसाल आज भी दी जाती है। इन्ही में से एक नाम हाड़ी रानी का भी है जिसके वीरता और अमर बलिदान की गाथा आज भी राजस्थान के अंचल में सुनाई देती है।
सलूंबर की रानी, हाड़ी रानी की यह कहानी 16वीं शताब्दी की है। हाड़ी रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी जिनका व्याह उदयपुर के सलूम्बर के राव रतन सिंह चूङावत से हुई थी। हाड़ी रानी ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने पति को उनका फ़र्ज़ याद दिलाने के लिए अपना ही सिर काट कर पेश कर दिया था। ताकि वह अपनी नयी नवेली दुल्हन के मोहपाश में बांध कर अपने राष्ट्र धरम से विमुख न हो। यह उस समय की बात है जब मेवाड़ पर महाराणा राज सिंह का 1652 से 1680 का शासन था।
उस समय राव रतन सिंह की शादी हाड़ा राजपूत की बेटी हाड़ी रानी से हुई थी। चूङावत रतन सिंह को महाराणा सज सिंह का सन्देश मिला , जिसमे रतन सिंह को दिल्ली से औरंगज़ेब की मदद के लिए आ रही अतिरिक्त सेना को हर हाल में रोकेने का आदेश दिया गया था।
शादी को कुछ ज़्यादा समय नहीं हुआ था और ऐसे में युद्ध पर जाने का आदेश रतन सिंह के लिए काफी मुश्किल था। राव हाड़ी रानी से इतना प्रेम करते थे की एक पल भी दूर रहना गंवारा नहीं था।
रानी ने अपने पति राव रतन सिंह को युद्ध पर जाने के लिए तैयार किया और विजय की कामना करते हुए विदा कर दिया।
सलूंबर महल के चौक में खड़े होकर राव रतन सिंह अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार कर रहे थे। लेकिन मन रानी की याद में था और तभी राजा ने एक सैनिक से कहा की रानी के पास जाकर उनसे कोई भी निशानी लेकर आएं। जब सैनिक रानी के पास निशानी लेने पहुंचा तो रानी को लगा कि राव रतन सिंह उनके प्रेम मोह से छूट नहीं पा रहे हैं और यदि युद्ध की यही स्थिति रही तो विजय कैसे प्राप्त होगी ?
तब रानी ने उस सैनिक को कहा कि अब मैं तुम्हे सन्देश के साथ साथ एक अंतिम निशानी भी देती हूँ जिसे आप जाकर राजा रतन सिंह जी को दे देना।
इसके बाद हाड़ी रानी ने अपना सिर काट कर उस सैनिक के हाथो निशानी के तौर पर राव रतन सिंह को भिजवा दिया। अपने पति को कर्त्तव्य की ओर मोड़ने के लिए लिया गया यह निर्णय हमेशा के लिए इतिहास में अमर हो गया। और हाड़ी रानी जैसी वीरांगना का वीर बलिदान एक अनूठी मिसाल बन गया।
सलूंबर की रानी, हाड़ी रानी की यह कहानी 16वीं शताब्दी की है। हाड़ी रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी जिनका व्याह उदयपुर के सलूम्बर के राव रतन सिंह चूङावत से हुई थी। हाड़ी रानी ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने पति को उनका फ़र्ज़ याद दिलाने के लिए अपना ही सिर काट कर पेश कर दिया था। ताकि वह अपनी नयी नवेली दुल्हन के मोहपाश में बांध कर अपने राष्ट्र धरम से विमुख न हो। यह उस समय की बात है जब मेवाड़ पर महाराणा राज सिंह का 1652 से 1680 का शासन था।
उस समय राव रतन सिंह की शादी हाड़ा राजपूत की बेटी हाड़ी रानी से हुई थी। चूङावत रतन सिंह को महाराणा सज सिंह का सन्देश मिला , जिसमे रतन सिंह को दिल्ली से औरंगज़ेब की मदद के लिए आ रही अतिरिक्त सेना को हर हाल में रोकेने का आदेश दिया गया था।
शादी को कुछ ज़्यादा समय नहीं हुआ था और ऐसे में युद्ध पर जाने का आदेश रतन सिंह के लिए काफी मुश्किल था। राव हाड़ी रानी से इतना प्रेम करते थे की एक पल भी दूर रहना गंवारा नहीं था।
रानी ने अपने पति राव रतन सिंह को युद्ध पर जाने के लिए तैयार किया और विजय की कामना करते हुए विदा कर दिया।
सलूंबर महल के चौक में खड़े होकर राव रतन सिंह अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार कर रहे थे। लेकिन मन रानी की याद में था और तभी राजा ने एक सैनिक से कहा की रानी के पास जाकर उनसे कोई भी निशानी लेकर आएं। जब सैनिक रानी के पास निशानी लेने पहुंचा तो रानी को लगा कि राव रतन सिंह उनके प्रेम मोह से छूट नहीं पा रहे हैं और यदि युद्ध की यही स्थिति रही तो विजय कैसे प्राप्त होगी ?
तब रानी ने उस सैनिक को कहा कि अब मैं तुम्हे सन्देश के साथ साथ एक अंतिम निशानी भी देती हूँ जिसे आप जाकर राजा रतन सिंह जी को दे देना।
इसके बाद हाड़ी रानी ने अपना सिर काट कर उस सैनिक के हाथो निशानी के तौर पर राव रतन सिंह को भिजवा दिया। अपने पति को कर्त्तव्य की ओर मोड़ने के लिए लिया गया यह निर्णय हमेशा के लिए इतिहास में अमर हो गया। और हाड़ी रानी जैसी वीरांगना का वीर बलिदान एक अनूठी मिसाल बन गया।