जब भी प्रेम की बात होती है, तो अक्सर लोग शेक्सपीयर की रोमियो-जूलियट, पंजाब की हीर-रांझा या राजस्थान की धोला-मारू जैसी प्रेम कहानियों को याद करते हैं। लेकिन भारत के हृदयस्थल छत्तीसगढ़ के बस्तर की माटी में भी एक ऐसी प्रेम कहानी दफन है, जिसे आज वहां के लोग न केवल याद करते हैं, बल्कि पूजते भी हैं। यह है झिटकु और मिटकी की कहानी – एक ऐसा प्रेम जो जीते जी भी अमर रहा और मृत्यु के बाद भी एक आस्था बन गया।
मेला और पहली मुलाकात
कोण्डागांव जिले के विश्रामपुरी गांव के पास एक छोटा-सा गांव है पेंड्रावन, जहां मिटकी रहती थी। वह सात भाइयों की इकलौती बहन थी, और भाइयों की लाड़ली। एक दिन गांव में मेला लगा, जहां मिटकी की मुलाकात पड़ोसी गांव के झिटकु से हुई। पहली ही नजर में दोनों को एक-दूसरे से प्रेम हो गया। मुलाकातें बढ़ीं, और प्यार गहराता चला गया।
जब झिटकु ने मिटकी से शादी की इच्छा जताई, तो भाइयों ने शर्त रखी कि वह घरजमाई बनकर रहे। झिटकु ने बिना हिचक मान लिया। शादी के बाद उसने मिटकी के लिए एक नया घर बनाया और दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
तांत्रिक, एक बलि और एक षड्यंत्र
समय बीता, लेकिन गांव में अकाल पड़ गया। तालाब सूख गया और गांव में चिंता फैल गई। एक तांत्रिक को बुलाया गया जिसने कहा – “अगर तालाब को फिर से भरना है, तो एक बाहरी व्यक्ति की नरबलि देनी होगी।” गांव वालों ने बाहरी मानकर झिटकु को चुना। मिटकी के भाइयों ने, गांव वालों के बहकावे में आकर, अपनी ही बहन के पति की हत्या कर दी।
मिटकी का बलिदान और अमर प्रेम
झिटकु की प्रतीक्षा करती मिटकी जब तालाब के किनारे पहुंची, तो अपने प्रेमी का शव देख बेसुध हो गई। उसने वहीं अपनी जान दे दी। कहा जाता है कि उसके हाथ में एक टोकरी (गपा) थी, इसलिए आज उसे ‘गपा देवी’ कहा जाता है, वहीं झिटकु को ‘खोड़िया देव’ माना जाता है।
परंपरा, पूजा और प्रतीक
बस्तर में झिटकु-मिटकी को देव स्वरूप माना जाता है। उनके नाम पर मेले लगते हैं, पूजा होती है, और उनकी मूर्तियों को घरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। ये मूर्तियां सिर्फ श्रद्धा का नहीं, बल्कि बस्तर की धातु कला (बेल मेटल आर्ट) का भी प्रतीक बन गई हैं। यह कला अब न केवल स्थानीय रोजगार का साधन बनी है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक पहचान भी।
एक प्रेम जो दुनिया तक पहुंचा
आज झिटकु-मिटकी की मूर्तियां देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। यहां तक कि राष्ट्रपति भवन में भी इनकी मूर्ति स्थापित है। यह प्रेम कहानी बस्तर से निकलकर एक वैश्विक सांस्कृतिक प्रतीक बन चुकी है।
कहानी आज के दौर में
जब रिश्तों में आत्मीयता कम हो रही है और प्रेम में स्थायित्व की कमी दिखती है, तब झिटकु-मिटकी की प्रेम गाथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि एक समर्पण है – जो जीवन के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा करता है।
बस्तर की यह अनसुनी लेकिन अमर प्रेम गाथा, हर उस दिल को छू जाती है जो प्रेम में सच्चाई, बलिदान और श्रद्धा ढूंढता है।