Bhoramdev Mandir: छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित है भोरमदेव मंदिर। जो भारतीय स्थापत्य कला और इतिहास का एक अद्भुत धरोहर है। ये मंदिर रायपुर से 125 कि.मी. और कवर्धा से 18 कि.मी. दूर चौरागाँव में स्थित है। इसकी बनावट और कलात्मकता की वजह से इसे ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहा जाता है।
क्या है मंदिर का इतिहास?
मंदिर (Bhoramdev Mandir) के इतिहास की तरफ देखें तो इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। इस मंदिर को प्राकृतिक सुंदरता के साथ अद्वितीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण भी माना जाता है। भोरमदेव मंदिर का अद्वितीय आकर्षण इसके कलात्मक मूर्तिकला, धार्मिक महत्व, और समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में है। इसके अलावा ये एक रहस्य है कि मंदिर की बनावट में खजुराहों और उड़ीसा के कोणार्क मंदिर के स्थापत्य कला का मिश्रण स्प्ष्ट रूप से दिखाई देता है जबकि इन दोनों ही स्मारकों को बनाने वाले शासकों ने यहां शासन नहीं किया है।
किस शैली में बना है मंदिर?
भोरमदेव मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है, जो भारतीय मंदिर स्थापत्य कला की एक प्रमुख शैली है। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है, जो आमतौर पर भारतीय मंदिरों की विशेषता है। यह मंदिर पाँच फुट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है और इसमें तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार हैं। मंदिर का मंडप 60 फुट लंबा और 40 फुट चौड़ा है, जिसमें कुल 16 खंभे हैं, 4 खंभे बीच में और 12 खंभे किनारे पर। ये खंभे कलात्मक हैं और उन पर अद्वितीय नक्काशी की गई है, जो मंदिर की छत को सहारा देती है।
गर्भगृह में विराजे हैं शिव
मंदिर के गर्भगृह में एक काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का नामकरण गोड़ राजाओं के देवता भोरमदेव के नाम पर किया गया है। गर्भगृह में शिवलिंग के अलावा पंचमुखी नाग की मूर्ति, नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति, और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थित हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर शिव, विष्णु, चामुंडा, गणेश, सरस्वती, और अर्धनारीश्वर जैसे देवताओं की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। ये मूर्तियाँ मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को और भी समृद्ध बनाती हैं।
अनुपम है मूर्तिकला
भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Mandir) की मूर्तिकला और स्थापत्य कला में खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर उत्कीर्ण मिथुन मूर्तियाँ, खजुराहो की कामुक मूर्तियों की याद दिलाती हैं। ये मूर्तियाँ तत्कालीन समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक विचारधारा को प्रतिबिंबित करती हैं। इन मूर्तियों में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है, जो तत्कालीन समाज के विचार और मान्यताओं को प्रदर्शित करती हैं।
कहते हैं छत्तीसगढ़ का खजुराहो
भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Mandir) को ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहे जाने का कारण न केवल इसकी स्थापत्य कला है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। यह मंदिर शिवभक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यहां हर साल शिवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर से एक अनोखा रहस्य जुड़ा है जिसके मुताबिक ये स्थानीय मान्यता है कि, इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में किया गया था, जब राजा गोपाल देव ने इसे बनवाने का आदेश दिया था। मंदिर के बारे में विस्तार से जानने के लिए Seepositive के यूट्यूब चैनल पर विजिट कर सकते हैं।
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Positive सार
भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Mandir) अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला, धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है।