Ansuni Gatha: कभी बस्तर की पहचान थी, घने जंगल, सन्नाटा और हर तरफ फैला डर। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। ये सिर्फ बदलाव की शुरुआत नहीं, बल्कि एक नई कहानी है, जिसे बस्तर की मिट्टी, उसके लोग और उनके सपने मिलकर लिख रहे हैं। जहां कभी बंदूकें थीं, आज वहां विश्वास, विकास और सपनों की गूंज है।
बदलाव की कहानी
बस्तर में वर्षों से फैली नक्सल हिंसा ने न जाने कितने सपनों को कुचला। लेकिन अब, वो लोग जिन्होंने बंदूकें उठाई थीं, आत्मसमर्पण कर देश सेवा में लग चुके हैं। DRG जैसे सुरक्षा बलों का हिस्सा बन, ये पूर्व नक्सली अब वर्दी पहन गर्व से तिरंगे को सलाम कर रहे हैं। ये सिर्फ आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि जिंदगी को दोबारा जीने की कोशिश है।
क्यों थाम रहे हैं मुख्यधारा का हाथ?
सरकार की पुनर्वास नीति ने इन भटके कदमों को नयी दिशा दी है। राज्य सरकार द्वारा लाई गई नक्सल आत्मसमर्पण नीति 2025 ने हिंसा छोड़ने वालों के लिए उम्मीद की नई किरण जगाई है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को आर्थिक सहायता, आवास, शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। उनके बच्चों के लिए स्कूल, युवाओं के लिए रोजगार के मौके और खेती के लिए जमीन – ये सब मिलकर उन्हें फिर से बसने और बढ़ने का मौका दे रहे हैं।
संख्या नहीं, विश्वास का प्रमाण
साल 2024 में 787 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं, बदलाव के संकेत हैं। हर आत्मसमर्पण एक नई सोच की शुरुआत है। ये दिखाता है कि सरकार की नीति, सुरक्षा बलों की रणनीति और जनता का साथ मिलकर असंभव को संभव बना सकते हैं।
सरकार की दोहरी भूमिका
राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही स्तरों पर लगातार यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि पुनर्वास केवल कागज़ी न रहे। आत्मसमर्पण करने वालों को न सिर्फ आर्थिक मदद दी जा रही है, बल्कि उन्हें समाज में सम्मान से जीने का अवसर भी दिया जा रहा है। विशेष योजनाएं, रोजगार, कृषि के लिए पट्टा और सामाजिक समावेश – इन सभी प्रयासों से ये लोग फिर से नयी पहचान बना पा रहे हैं।
जब बस्तर मुस्कुराया
बस्तर अब सिर्फ संघर्ष की भूमि नहीं, उत्सव की भी धरती है। बस्तर ओलंपिक, अबूझमाड़ हाफ मैराथन, बस्तर पंडुम जैसे आयोजनों ने यहां के युवाओं को नई दिशा दी है। ये सिर्फ इवेंट नहीं, बल्कि जनभागीदारी की मिसाल हैं, जो दिखाते हैं कि बस्तर अब आगे बढ़ना चाहता है।
वो गांव जो उम्मीद बोते हैं
आज बस्तर के गाँवों में स्कूल, पानी, सड़क, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंच चुकी हैं। “नियद नेल्लानार” जैसी योजनाएं उन इलाकों तक सरकार को ले जा रही हैं, जहां कभी कोई अफसर जाने की हिम्मत नहीं करता था। अब नक्सल प्रभावित गांव सिर्फ सरेंडर नहीं कर रहे, बल्कि पूरी तरह से नक्सल मुक्त बनकर नई पहचान बना रहे हैं।
आत्मसमर्पण नहीं, नया जन्म
ये सिर्फ आत्मसमर्पण की कहानियां नहीं, ये हैं विश्वास, बदलाव और नए जीवन की गाथाएं। बस्तर आज गर्व से कह सकता है, जहां बंदूकें शांत हुईं, वहां सपने जागे हैं।