गुरू घासीदास नेशनल पार्क: जैव विविधता का अनमोल खजाना

Guru Ghasidas National Park: क्या आपने कभी छत्तीसगढ़ के गुरू घासीदास नेशनल पार्क का दीदार किया है? अगर नहीं तो आप कई अद्भुत चीजें मिस कर रहे हैं। जैसे यहां की सांस्कृतिक विरासत, रोमांच से भरने वाले घने जंगल और समृद्ध जैव-विविधता। जी हां हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नेशनल पार्क यानी कि गुरू घासीदास नेशनल पार्क की। आज की हमारी अनसुनी गाथा है 1 हजार 440.71 वर्ग किलोमीटर में फैले विशाल गुरू घासीदास नेशनल पार्क की जो अब भारत के तीसरे सबसे बड़े टाइगर रिजर्व के रूप में जाना जाएगा तो क्या आप तैयार एक अनोखी और खूबसूरत यात्रा के लिए?

यहां देखें वीडियो-

छत्तीसगढ़ बनने के बाद मिला नया नाम

गुरू घासीदास नेशनल पार्क की स्थापना 1983 में हुई थी, जब इसे मूल रूप से संजय-डुबरी टाइगर रिजर्व के रूप में नामित किया गया था। उस समय ये पूरा क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा था। 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और इस टाइगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा नए राज्य में आ गया। इसके बाद, छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे महान संत गुरू घासीदास के नाम पर नया स्वरूप और नाम दिया। गुरू घासीदास, सतनाम पंथ के प्रवर्तक थे, जिन्होंने समाज में समानता और पर्यावरण संरक्षण के विचारों को बढ़ावा देने का काम किया।

छत्तीसगढ़ बनने के बाद मिला नया नाम


2011 में, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, राजनीतिक और औद्योगिक कारणों से ये मामला लटका रहा। लेकिन अंततः, 5 अक्टूबर 2021 को इसे छत्तीसगढ़ का चौथा टाइगर रिजर्व और भारत का 53वां टाइगर रिजर्व के रूप में मान्यता मिली। लेकिन इस क्षेत्र की खासियत को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे टाइगर रिजर्व बनाने के प्रयास को जोर दिया और कई सालों के प्रयास के फलस्वरूप गुरू घासीदास नेशनल पार्क और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य को मिलाकर यह टाइगर रिजर्व बनाया गया।

जैव विविधता से भरा है ये पार्क


ये क्षेत्र 2829.387 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो इसे देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व के रूप में खास बनाता है। इसके पहले स्थान पर नागार्जुनसागर-श्रीसैलम टाइगर रिजर्व (3296.31 वर्ग किमी) और दूसरे स्थान पर मानस टाइगर रिजर्व (2837.1 वर्ग किमी) हैं। यही नहीं गुरू घासीदास नेशनल पार्क अपनी अद्वितीय जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। ये क्षेत्र नर्मदा घाटी के शुष्क पर्णपाती वनों और उपोष्णकटिबंधीय यानी कि सबट्रॉपिक्स जंगलों से ढका हुआ है। वहीं यहां की वनस्पतियों की बात करें तो यहां पाए जाने वाले मुख्य वृक्षों में साखू (सल), सागौन, साजा, सालई, महुआ, शीशम, तेंदू और बांस शामिल हैं। इन वनों में औषधीय पौधों की भी भरमार है, जो स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी लाभों का महत्वपूर्ण सोर्स है।

बाघों के अलावा भी हैं कई जंगली जानवर


जीव-जंतुओं की बात करें तो ये राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है। यहां बाघों के साथ-साथ तेंदुए, नीलगाय, चीतल, जंगली सूअर, गैंडा, सियार, भालू, लोमड़ी और कई अन्य स्तनधारी पाए जाते हैं। पक्षियों में तोता, बुलबुल, रैकेट-टेल ड्रोंगो, लाल सिर वाला गिद्ध और रुफस ट्रीपाई मुख्य आकर्षण हैं। इसके अलावा, अजगर, कोबरा और मॉनिटर लिजार्ड जैसे रैपटाइल भी यहां की जैव विविधता को समृद्ध बनाते हैं।
गुरू घासीदास टाइगर रिजर्व को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा मान्यता प्राप्त है। NTCA का गठन 2006 में किया गया था, जो भारत में प्रोजेक्ट टाइगर और बाघ संरक्षण की सभी योजनाओं का प्रबंधन करता है। इस टाइगर रिजर्व को बनाने का उद्देश्य न केवल बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था, बल्कि इसे बाघों के लिए एक कोरिडोर के रूप में विकसित करना भी था, जो बांधवगढ़ (मध्यप्रदेश) और पलामू (झारखंड) के टाइगर रिजर्व को जोड़ता है।

बाघों की संख्या बढ़ने की उम्मीद


गुरू घासीदास नेशनल पार्क के पर्यावरणीय और सामाजिक लाभों की बात करें तो गुरू घासीदास टाइगर रिजर्व के निर्माण से बाघों की संख्या में वृद्धि की उम्मीद है। ये क्षेत्र बाघों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित कर उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करेगा।

ईको पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा


इसके साथ ही टाइगर रिजर्व के कारण क्षेत्र में ईको-पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। पर्यटक गाइड, होटल, रिसॉर्ट्स और अन्य सेवाओं के माध्यम से स्थानीय समुदायों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। इससे आर्थिक लाभ भी जुड़े हैं जैसे राष्ट्रीय प्रोजेक्ट टाइगर ऑथोरिटी से अतिरिक्त बजट मिलने से इस क्षेत्र का विकास होगा। स्थानीय लोगों को वनों से जुड़े रोजगार के नए साधन प्राप्त होंगे और जिससे उनकी आजीविका में सुधार होगा।
टाइगर रिजर्व के निर्माण से पर्यावरणीय संतुलन पर भी काम होगा क्योंकि इस क्षेत्र में घने जंगल और विविध वन्यजीव हैं। जो छत्तीसगढ़ के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मदद करेंगे। ये जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में भी सहायक होगा।

आगे क्या है चुनौतियां?


हालांकि ये टाइगर रिजर्व कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है। खनन कार्य, औद्योगिक दबाव और स्थानीय समुदायों के हितों का टकराव इस क्षेत्र के विकास में बाधा बन सकते हैं। इन चुनौतियों का समाधान स्थानीय समुदायों को संरक्षण योजनाओं में शामिल करके और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। लेकिन सरकार इन मुद्दों को भी हल करने के लिए कई कदम उठा रही है ताकि स्थानीय जनजीवन किसी भी तरह से हताहत न हों और उनके हितों पर काम किया जा सके।

Positive सार

गुरू घासीदास नेशनल पार्क और तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत के लिए एक पर्यावरणीय धरोहर है। ये टाइगर रिजर्व बाघ संरक्षण के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसके साथ ही, यह क्षेत्रीय विकास, रोजगार सृजन और पर्यावरणीय स्थिरता के माध्यम से स्थानीय समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में भी सहायक होगा। इसके संवर्धन से छत्तीसगढ़ के लिए “विकास और संरक्षण के समन्वय” का एक बेहतरीन उदाहरण पेश होगा। क्या आपको पता है गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान से होकर कौन सी नदी गुजरती है? अगर हां तो हमें कमेंट कर जरूर बताएं।

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Rishita Diwan

Content Writer

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