झारखंड की आदिवासी महिलाएं: बिज़नेस वुमन

च्छाशक्ति से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाती झारखंड की आदिवासी
महिलाएं सफलता की नई कहानी लिख रही हैं। खुद को बिज़नेस वुमन कहती ये महिलाएं किसी
मेट्रो पोलिटन शहर की महिलाएं नहीं हैं और ना ही उन्होंने किसी बिज़नेस स्कूल से कोई
तालिम ली है।  ये महिलाएं किसान दीदी हैं। झारखंड
के आदिवासी इलाकों की किसान दीदी। किसान दीदी वनोपज के माध्यम
से अपनी आजिविका चला रही हैं। साथ ही एक सुव्यवस्थित ढंग से बिज़नेस मॉडल भी
तैयार कर रही हैं। इस बिज़नेस की हर कड़ी आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं से जुड़ी है।

केंद्र सरकार की महिला सशक्तिकरण परियोजना से जुड़ी इन महिलाओं
को कृषि और बिज़नेस दोनों सिखाया जा रहा है। झारखंड की लगभग 1
,20,000
महिलाएं
JSLPS (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) की
महिलाएं इस परियोजना से जुड़ी हुई हैं। इस परियोजना का उद्देश्य कृषि के क्षेत्र में
ग्रामीण महिलाओं की स्थिति को सुधारना और उन्हें आजिविका के अवसर उपलब्ध कराना है।

झारखंड का सिमडेगा जिला, यहीं
पर तैयार हो रही हैं कुछ आदिवासी बिज़नेस वुमन। ये महिलाएं जिले के आस-पास के ग्रामीण
क्षेत्र की रहने वाली हैं, जो सुबह 8 बजे साइकिल से अपने केंद्र में इकट्ठा होती हैं।
यह केंद्र झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी (
JSLPS) द्वारा
स्थापित है। राज्य सरकार की यह संस्था ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए
काम करती है। यहां पर आदिवासी महिलाएं कुसुम
, करंज
जैसे वनोपजों को संग्रहण कर बाज़ार के दाम पर बेचती हैं। इनके द्वारा बेची गई वनोपजों
को बोरियों में भरकर दूसरे केंद्रों में भेजा जाता है। जहां वनोपजों से तेल और जरूरी
चीजें बनाकर बाज़ार में बेचा जाता है।

परियोजना के हर चरण में महिलाएं भागीदार

इस परियोजना का उद्देश्य महिलाओं को कृषि के क्षेत्र में
सशक्त करना है। इसके हर चरण में महिलाएं शामिल हैं। वनोपज के संग्रहण से लेकर उन्हें
बाज़ार तक बेचने में महिलाएं भागीदार हैं। पहले किसान दीदी महुआ
, कुसुम, करंज
और इमली जैसे वनोपजों को इकट्टा कर बेचती हैं। इन बीजों को
JSLPS के
स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के द्वार खरीदा जाता है। इसके बाद महिला समूहों के द्वारा
इन बीजों से तेल निकालने और बिक्री के लिए तैयार करने का काम किया जाता हैं। इससे यह
लाभ हो रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं बिचौलियों से बच जाती हैं और उन्हें
उनकी उपज संग्रहण का पूरा दाम मिलता है जो उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध कर रहा है।

कैसे काम करती है महिलाएं ?

आदिवासी महिलाएं तीन चरणों में काम करती हैं। पहले वनोपजों
को एकत्रित करती हैं। संग्रहण और प्रसंस्करण के बाद तेल निकालने का काम होता है। और
फिर तैयार उत्पाद को बाज़ार में बेचा जाता है। सिमडेगा जिले की लगभग 3 हजार महिला किसान
, 12
सौ
महिला संग्रहणकर्ता और 150 महिला प्रोसेसर मिलकर काम करती हैं। 
पहले बीज संग्रहण करने वाली महिलाओं को बीजों के बदले
कोई पैसे नहीं मिलते थे। या फिर नाममात्र दाम से ही उन्हें काम चलाना पड़ता था। लेकिन
महिलाओं के इस परियोजना से जुड़ने के बाद अब किसान दीदी एक सीजन में ही 3 से 4 हजार
रुपए तक कमा लेती हैं। इसके अलावा पैकेजिंग और निष्कर्षण के काम से भी महिलाएं अपने
जैसी और जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार दे रही हैं। इस काम के बाद अब आदिवासी महिलाओं  ने किसान के रूप में अपनी पहचान बना ली है। महिलाओं
की सफलता को देखते हुए उन्हें मशीनों के संचालन और मरम्मत का प्रशिक्षण भी दिया जा
रहा है।

कैसा है बिज़नेस मॉड्यूल  ?

महिलाओं को आत्मनिर्भर करने वाला यह व्यवसाय अब आदिवासी महिलाओं
के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है। आर्थिक रुप से समृद्ध महिलाएं आस-पास की महिलाओं
को प्रेरित कर रही हैं । किसान दीदी अपने उत्पादों को एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन)
और पलाश ऐप के माध्यम से खरीददारों को बेचते हैं। सरकार की मदद से ये महिलाएं अपनी
आपूर्ति को बढ़ाने के लिए उत्पादन इकाई को मजबूत करने पर काम कर रही हैं। आदिवासी महिलाएं
खुश होकर खुद को बिज़नेस वुमन बताती हैं। उनके चेहरे की चमक उनकी सफलता की कहानी को
बयां करती है। वो मुस्कुराते हुए कहती हैं
हमने
अब व्यापार करना सीख लिया है। पहले बस नाममात्र पैसे मिलते थे। पर अब हमारे हाथ में
भी पैसा आ रहा है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही हमारा कारोबार 50 हजार का होगा।
अभी तो बस शुरुआत है।”

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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