Paddy cultivation: भारत में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहां धान की खेती के पारंपरिक तरीकों को आज भी अपनाया जाता है। लेकिन कृषि के क्षेत्र में तकनीकों के विस्तार ने कृषि में नवाचारों को जन्म दिया है। ऐसी ही कृषि से जुड़े नावाचारों पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने नया रिसर्च किया है। जिसमें धान की खेती में उचित जल प्रबंधन को बताया गया है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
इसके बारे में विस्तार से बात करते हुए ये जानकारी वैज्ञानिकों ने दी है कि धान की खेती में उचित जल प्रबंधन और सिंचाई की जानकारी का होना सबसे प्राथमिक चीज है। जल प्रबंधन से पानी की बचत तो की जा सकती है साथ ही कृषि में लागत को भी कम किया जा सकता है। वहीं उपलब्ध जल से अधिक से अधिक क्षेत्र में सिंचाई भी की जा सकती है जिससे धान के उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
किन बातों का रखना होगा ध्यान?
- धान की खेती (Paddy cultivation) में किसान को सबसे पहले नर्सरी का ध्यान रखना होगा।
- धान की नर्सरी में पानी की कमी होने से बीज अंकुरित होने में परेशानी हो सकती है।
- नर्सरी में हमेशा नमी बनी रहे इसके लिए नर्सरी में कभी भी जलजमाव की स्थिति न पैदा नहीं होने देना चाहिए।
- नर्सरी के पौधे बहुत ही नाजुक होते हैं ऐसे में सिंचाई की दृष्टि से फव्वारा विधि काफी काम आ सकती है।
- वहीं क्यारियों के बीच में बनाई गई नालियों में जल देकर भी सिंचाई की जा सकती है।
सिंचाई का सही समय
धान की खेती (Paddy cultivation) पर बात करते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि सिंचाई में लगने वाले पानी के नुकसान को कम किया जा सकता है। धान के पौधों में सिंचाई हमेशा शाम के समय करनी चाहिए। छोटी अवस्था में अधिक जल भरने पर फसल की बढ़वार नहीं होती है पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं।
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पानी निकलने का हो सही इंतजाम
धान की खेती (Paddy cultivation) करते समय किसान को जल निकासी की भी सही व्यवस्था करनी चाहिए। इससे धान की पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उन क्षेत्रों में जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए जहां हमेशा जल भरा रहता है।